Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 133
________________ हरिवंसपुराणु [७] सहि अवसरे सण्णज्झइ साहणु रहवर-तुरय-महागय-काहणु दिण्ण-तूर-परिवढिय-कलयलु दणु-दुप्पहरणु पहरण-कलयलु रुप्पिणि-तणएं विसम-सहावे मोहिउ वलु पण्णत्ति-पहावे जो जो दुक्कइ तं तं चप्पेवि उवहिमाल कुरुवाहे समप्पेवि रिसि सुच्चइ(?) उहु रुप्पिणि-णंदणु काई अ-कारणे किउ कडमहणु एम भणेविं वे वि गय तेत्तहे पंडव-राय-पहाणउ जेत्तहे रहवर-तुरय-गइंद-विमाणेहिं धय-छत्तेहि अणेय-पमाणेहि दप्पण-दहि-दुव्वक्खय-सेसहिं अइहव-मंगल कलस-विसेसहि पत्ता पुच्छित कुसुमसरेण कहि ताय ताय कि सेरउ । दीसइ खंधावारु उहु संचलंतु कहो केरउ ॥ [८] तो णय-विणय-पक्ख-संजुत्तहो . कहइ महा-रिसि रुप्पिणि-पुत्तहो एहु सो चंद-केउ क्रमलाउहु पंकय-दर-करच्छि पंक्य-मुहु पंडव-जेठु सुठु विक्खायउ धम्म-पुत्तु धम्मुच्छवे जायउ दीसइ चिंधे जासु पंचाणणु एहु सो भीमु भीम-भड-भंजणु जसु सोवण्ण-महाधए वाणरु एहु सो अज्जुणु पवर-धणुद्धरु ओए जमल थिय अग्गिम-खंघे रिउ णासंति जाहं रणे गंधे णर-णंदण-णंदहे उप्पण्णी कंचणमाल कला-संप्पप्णी सच्चहाम-तणयहो वल-सारहो दिज्जइ लग्गी भाणुकुमारहो धत्ता तं णिसुणेवि पज्जुण्णु तरु-वेलियाउलए मग्गए । स-सर-सरासण-हत्थु धाणुक्कु होवि थिन अग्गए ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144