Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 132
________________ बारहमो संधि घत्ता कामिणि-कामहं कामु धुत्तहं अभंतरे धुत्त । । जगडइ षट्टणु सव्वु बहु-रूवेहि रुप्पणि-पुत्तु ।। [५] सो पण्णत्ति-पहावें वालउ पइसइ हत्थि होवि गय-सालउ मयगल मउ मुयंत फेडात्रिय भग्गालाण-खंभ ओसारिय पुरे पइसरइ वालु वड-वेसे जोइज्जइ डिंभेहिं विसेसे दीहिय-वावि-दुवारई रुंभइ जलु जुवइहिं गिण्हणइं ण लब्भइ सव्वई भोयणाई आगरिसइ भण-जणई वियण्णई दरिसइ दस-गुणु वणिहिं अग्घु वड्ढावइ णं तो वहुरूविहिं कडूढावइ सो गरु णाहिं जो ण खलियारित पट्टणे एम करंतु दुवालिउ ४ । घत्ता गउ दुग्जोहणु जेत्थु करे माहुलिंगु ढोइज्जइ । तेण-वि पुणु सय-वार पिय-माणुसु जिह जोइज्जइ ॥ [६] जसु जसु ढोयइ कुरु-परमेंसरु सो सो भणइ देव एउ विसहरु भंडागारिएण ण समिच्छिउ देव माहुलिंगु एहु विच्छिउ पुच्छिज्जंतु वियारेहिं जंपइ क्डु पंडिउ पयंडु णउ कंपइ हउं पीयंवर-जणणे जायउ कण्णस्थिउ तुम्हहो धरू आयर परिरक्खंति अज्जु जइ देव-वि मई परिणेवी अवसे तेम-वि तहि अवसरे दुज्जोहण-राणी जलहिमाल णामेण पहाणी पेसिय ताए महत्तरि ढुक्की महेण मूयल्लेवि मुक्कों णउ णीसरइ वाय पर सण्णइ वालु णिरारिउ गुण णिव्वण्णइ घत्ता खुजउ होवि पइठु चंडिलेण लेवि वहु पहाविय । . पुणु वरइत्त-छलेण अवहरेवि विमाणे चडाविय ॥ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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