Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 130
________________ बारहमो संधि पवर-विमाणाख्दु संच्चल्लु कुमारु सुहावइ । सच्चहे छाया-भंगु रुप्पिणिहे मणोरहु णावह ॥१ [१] उत्तिय-भिसिय-कमंडलु-धारउ पुच्छिउ वम्महेण रिसि गारस कहि कहि ताय ताय तणु-तावणु किह महु मायहे सिर-भद्दावणु भणई महा-रिसि किं वित्थारे सुशु अक्खमि तं जेण पयारें सच्चहाम महएषि पहिल्ली रुप्पिणि रुपिणि पुणु पच्छिल्ली ४ ताहं विहि-मि चंदकिय-णामहिं हूय होड तुह मायरि-भामहिं जाहे जे जेठु पुत्तु परिणेसइ सो मुंडिए सिरे पाउ ठवेसई कुविउ कामु गुण-गण-गरुयारी का परिहवइ जणेरि महारी तहो तोडमि सिरु विरसु रसंतहो सरणु पवज्जइ जइ-वि कयंतहो ८ पत्ता एवं भणेवि कुमार संचल्लिउ विज्जा-पाणे । दीसइ णहयले जंतु णं रावणु पुप्फ-विमाणे ॥ चलिउ महा-रिसि समउ कुमारे विण्णि-वि तेयवंत उपसोहिय पट्टणु तावं दिठु कुरु-णाहहो णिवडिउ सग्ग-खंबु ण तुडेवि णाई अणंग-णयह आवासिड जहिं पायार णहंगण-लंघा [२] गं मयलंछणु सहुँ सवि-तारें जं जह-भवणे पईवा बोहिय कलि-कालहो कुल-कलुस-सपाहहो णं थिउ घणय-धामु विच्छुदृषि सुंदर सुरवर-पुरहो-वि पासिष्ठ गुरु-उवएस जेन दुल्लंघा विर-पुरा ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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