Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 129
________________ हरियाणा [१५) पेसिउ गरवह णिय--पट्टणहो रिसि अक्खड रुप्पिणि-गंदणहो किं वह वाया-वित्थरेण जिह अक्खिउ सिरि-सीमंधरेण जिह परिभमिओसि भवंतरई पावंतउ दुक्ख-परंपरई जिह केसव-कंतहे संभविउ जिह धूमकेत-दाणवेण जिउ ४ जिह कहि-मि सिलायले-सण्णिमिउ जिह खयरे पियहे समल्लवित जिह सोलह वरिसई ववगयई जिह सिद्धर विज्जाहर-पयई जिह वहरि-सेण्णु सर-जज्जरिउ जिह कंचणमाला-दुच्चरित जिह पहु-कोवग्गि-समण-गयई जिह लद्धई कामएव-पयई. पत्ता तिह मई सयलु-वि वुझियउ लइ जाहु देहि अवरुंडणु । जाम भाम णउ रुप्पिणिहे सयंभुएहि करइ सिर-मुंडणु ॥ ९ इय रिठ्ठणेमिचरिए धवलइयासिय-सयंभुएव-कए । पज्जुण्ण-लील-वण्णणो णाम एगारहमो सग्गो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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