Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
तेरहमो संधि
पुरे पइसारियल परिणाविउ बालउ । कुरुवइ-णर-सुवउ उवही-रिण-मालउ ॥१॥
[१] णारायण-णयण-मणोहिराम पच्चारिय रुपए सच्चहाम कहिं गम्मइ वहिणि ण मुवमि अज्जु भदावमि सिरु किर कवणु चोज्जु रक्खउ तुह केरउ सामिसालु महुसूयणु अहवइ कामपाल अह संभरु भाणुकुमार पुत्त भदावणु दरिसावमि णिरुत्त तं वयणु सुणेपिणु भणइ भाम पय-भंगुप्पाइय-तिबिह-णाम णिय-गंदण-गव्विणि जइ-वि जाय कहे किह तुह मुहे णीसरिय वाय जो मुठ गउ कालंतरेण खनु आवाए जे कहिं पई पुत्तु लनु. वेयारिय आएं तावसेण महु मग्झे वेढिय तामसेण
घत्ता सच्चउ चिरु गयउ कहिं दीसइ गंदणु । भामए भामियउ भमि भमइ जणहणु ॥
. [२] परिचितेवि णरसुर-घायणेण सुर-रिसि णारउ पारायणेण स-विणय-गुण-बयणेहिं एम वुत्तु पई जाणिउ किह महु तणउ पुत्तु सउकेय(१) विसत्थ जणाहिराय पत्तियइ ण केम-वि सच्चहाम तं णिसुणेवि पभणइ अविदचारु(१) जहिं काले गवेसिट मई कुमार तहिं काले पुंडरिंगिणि पइडु सीमंधर-सामिउ गपि दिदछु तहिं पउमरहेण रहंगिएण विकम-सिरि-रामालिंगिएण
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 136 137 138 139 140 141 142 143 144