Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 114
________________ नवमो संधि [१६] तो विणिवारिएण सर-जाले णिसि-पहरणु पेसिउ सिसुपाले छायउ अवर-विवरु दियंतरु एउ ण जाणहुँ कहिं गउ दिणयरु फुरियई तारा-गह-णक्खत्तई णह-सिरे थियई णाई सयवत्तई णिश्वसेसु जगु मायए छइयां जायव-साहणु णिहए लइयउं ४ उर-कोत्थुह-मणि-स्यणुज्जोएं लोयण-चंदाइच्चालोएं मेल्लिउ दिणयरत्थु गोविंदे पण्णय-पहरणु चेइ-गरिंदें फुरिय-फणामणि सोहिय-सेहर रणु पूरंत पधाइय विसहर णिव णिवडिय गयवर सिहरेहि णं तरुवर-कर-पल्लव णियरेहिं ८ घत्ता रहवर-वम्मीय-सहासेहिं तुरय-कण्ण-मुह-कोडरेहिं । णिवसिय णाराय-भुवंगम जम-जिह वहु-रूवंतरेहिं ॥ ९ [१७] तहिं अवसरे सर-कर-परिहच्छे पेसिउ गारुडत्थु सिरि-वच्छे एक्कु अणेयागारेहिं धाइउ दस-दिसि-चक्कवाले णउ माइड पक्ख-पसारणे किय धण-डंवरु दूरवणु पवण-विहुअवरु चलणुच्चालण-चालय-महिहरु कय-सय-विवर-दुवार-वसुंधरु ४ सहुं-पायालहो जंति विहंगम कहिं णासंति वराय भुवंगम गारुडत्थु जे एम वियंमिउ तो चेइवेण थाणु पारंमिउ पेसिउ अग्गि-अत्थु वलवंतउ णहु महि एकीकरणु करंतउ हरि-वल-वलु सम-जालीहूयउ खंध-चडाविय-वइवस-दूयर्ड घत्ता तो वारुणु मुक्कु अणतेण हुयवहु तेण गिरस्थियउ । नहिं अप्पउ कहि-मिण दीसइ तेउ अ-तेउ होवि थियउ ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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