Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 122
________________ एगारहमो संधि ताम्ब कालसंवर-णिवहो उद्धद्ध रज्जु पर-चक्के । एक-रहेण जे वम्महेंण हउ तिमिरु णाई तरुणक्के ॥ १. । । [१] तो ताम जुवाण-भावे चडिउ णं सुर-कुमारु सग्गही पडिउ सु-मणोहरे मेहसिंग-णयरे हरि-तणउ कालसंवरहो घरे वड्ढिउ सोलह वरिसई गयई जायई अंगई विक्कम-मयई सोहग्ग-महामणि-रयण-णिहि तहो को णिव्वण्णइ रूव-विहि जसु केरा परिवढिय-पसर तिहुअणु असेसु जगडंति सर सो मयरकेउ सई अवयरिउ कर-चरणाहरणालंकरिउ परिसकइ ढुक्कइ जहिं जे जहिं तरुणीयणु तप्पइ तहिं जे तहिं दीहर-लोयण-सर-पहर-हय णिय-जणि जे तहो अहिलासु गय ८ घत्ता कामें कामुक्कोयणेण कल-कोइल-कुल- वायालहे । . अंगहो लाइउ रणरणउ अत्थक्कए कंचणमालहे ॥ [२) परमेसरि पीण-पओहरीहिं वोल्लइ समाणु णिय-सहयरीहिं हले लवलि लवंगिए उप्पलिए . कैकेल्लि एलि जाइफलिए कप्पूरिए कुंकुमकद्दमिए णव-कुसुमिए मउरिए पल्लविए किण्णरिए किसोरि मणोहरिए आलाविणि परहुए महुयरिए महु चित्तहो भुंभुल-भोलाहो , पडिहाइ ण झुणि हिंदोलाहो णउ भासहे विविह-पयारियहे णउ कउहहे णउ साहारियहे गउ टक्क-राय-टक्कोसियह सामीरय-मालवकोसियह लइ पंचमु पंचमु काम-सरु जो विरहिणि-मण-संतावयरु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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