Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 124
________________ एगारहमो संधि घत्ता छत्तई वसुभइ वइसणउं लइ हय-य-रयणाई। तुहुं पइ हउं महएवि जइ तो सग्गे किज्जइ काई । [५] णिय-देह-रिद्धि जइ वल्लहिय तो राय-लच्छि लइ मई सहिय पहु होहि समाणु पुरंदरहो विसु संचारिज्जइ संवरहो तहे वयणु सुणेवि कुसुमाउहेण वोल्लिज्जइ रुपिणि-तणुरुहेण एउ काई अजुत्तु वुत्त वयणु तुहुँ जणणि कालसंवरु जणणु सिरु छिज्जइ जइ-वि अज्जु मरमि दुक्कम्मई विण्णि-वि णउ करमि कंचणमालए णिन्भछियउ तुहुं महु उयरे ज्जि ण अच्छियउ वणे लद्धउ केण-वि कहि-वि हुउ कहो तणिय माय कहो तणउ सुउ ते तेहउ ताहे वयणु सुणेवि पभणइ अणंगु अंगई धुणेवि घत्ता तई हई लालिउ तालियउ परिपालिउ णव-तरु जेवं । । दिण्ण विजथणु पाइयउ भणु जणणि ण वुच्चहि केवं. ९ [६] जउ-गंदण-गंदणु दणु-दलणु अइ-बाल-कमल-कोमल-चलणु गर वीरु मह-रहवरे चडेवि थिय कणयमाल मंचए पडेवि णह-णियर-वियारिय-थणय-जुय वाह-जलोहामिय णयण-दुअ पिहिवीसरु तावं परावरिउ सामंत-सहासेहिं परियरिउ पिय पुच्छिय दुम्मण काई थिय तउ तणएं एह अवत्थ किय जं एवं परिंदहो अक्खियउ तेण-वि करवालु कडक्खियउ तहिं अवसरे विग्जुदादु चवइ खत्तियहो अखत्तु ण संभवइ किं रह-गय-तुरय-जोहा-वलेण जइ हम्मइ तो केण-वि छलेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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