Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 121
________________ २७६ हा केण पुत्त महु अवहरिउ हा एक्कसि दावहि मुह-कमल -उठवलिउ मलिउ ण णिहालियर मए पोवर वुक्खहो भायणए दुद्दम-दाणत्र-वलमद्दणहो उच्चापवि लइउ ण हलहरेण ण दसामहेहिं परिचुंवियउ तहो जीविउ लितहो दुम्मइहे तहि अवसरे धोरिय महुमहेण तहु पावो दुक्कियगारहो ण मरइ तुह णंदणु जइ-वि णिउ - होसइ विअब्भवइ - सुयहो सुर दुग्गेज्झु अवज्झु थणद्वउ - वि जाएवि जाएसइ कंति कहि तहिं अवसरे णवर समावाडउ मंभीसिअ तेण तुरंत एण अइमुत्तु महारिस सिद्धि गउ उता गवेसमि सग्रल महि [ ११ ] णिरुवम-गुण- रयणालंकरिड पहविउ पुत पिउ थण - जुयल ण सहत्थे लालिउ पालियउं णिद्देवए हअए अ-लक्खणए उच्छंगे ण दिठु जणहणहो णालिंगिड अम्ह कुछहरेण - वि महुपु विडंबियउ किह सीसु ण फुटु पयावइहे गउ एम भणेपिणु देव - रिसि सीमंधर - सामि - समोसरणु Jain Education International हरिवंसपुराणु घत्ता पुत्त तुहारउ जेण णिउ । सणि अवलोयणे अज्जु थिउ || [ १२ केवलिहि आसि आए किउ वम्महु सुर - करि-कर-पवर-भुउ ण मरइ सुरिंद- वज्जाहउ - वि हरं हलहरु वे-वि सहाय जहिं आगासहो णारउ णं पडिउ किं वहि मइ-मि जियंतएण जिणु अणुपओ-त्रि उ कहइ त सो जावं दिट्टु गुण-मणि-अवहि ८ घन्ता * इय रिट्टणेमिचरिए धवलइयासिय सयंभुएव कए । पन्जुण्ण -हरण - णामेण इमो दहमओ सग्गो ॥ F पुत्र- विदेहु णहंगणेण । जहि सई भूसिउ सुरयणेण ॥ For Private & Personal Use Only ९ ४ ४ www.jainelibrary.org

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