Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 119
________________ १४ हरिखसमुयश बहु-दिवसेहिं भिप्फरा-राय-सुथए त्यसलए चउत्थ-तोय-धुअए जो पच्छिम पहरे णिरिक्खियर्ड सो सिविणउं दिण्ण-मुहे अक्खियां णारायण दिदछु विमाणु मइं हरि चवइ लहेवउ पुत्तु पई विज्जाहरु जायव-कुल-तिलउ सोहग्ग-रासि गुण-गण-णिलउ ४ भामए-वि एव सिविणउ कहिउ सुउ होसइ इक्कोयर-सहिउ बहु-दिणेहिं महंतहि सोहलेहि __णव मास पुण्ण बहु-डोहलेहि एक्कहिं दिणे वे-वि पसूइयउ पट्टवियउ णिय-णिय-दूवियउ पहिलारउ तुह-पहट्टियए कमलोयर-चलणंतट्टियए वद्धाविउ रुप्पिणि-दूइयए अवरए-वि सिरंतरे हूइयए जउ-गंदण-णंदणु-जाउ तउ विहसंतु अणंतु तुरंतु गउ धचा पहिलउ पेक्खंतहो पुत्त-मुहु जे सुहु तं दामोयरहो । चककक्क-कित्ति-वद्धावणए दुकरु तं भरहेसरहो । [८] पिक्खेपिणु रुप्पिणि सुय-वयणु गउ सच्चहाम-धरु महुमणु तहिं अवसरे धूमकेउ असुरु दढ-कढिण-भुयग्गलु वियड-उरु णहे जंतहो तहो विमाणु खलिउ उ चरिम-सरीरोवरि चलिउ जाणिउ विहग-णाणहो वलेणे हउ चिरु परिभमिउ एण खलेण ४ अवहरिय कलत्तु महु-तणउ तं वयसै हणेव्वउ अप्पण अइ णिद्द महाएविहे करेवि सो वालु विमाणहो अवहरेवि णं गरुडे णायकुमारु गियउ अइ-भूमि गंपि चितंतु थिउ उ आयहो जीविउ अवहरमि सयमेब मरइ जिह तिह करमि ८ घत्ता गउ उप्परि वालहो देवि सिल वईवस-णयरि-पोलि-णिह । तहिं काले कालसंव: गयणे सुक्के खोलिउ मेहु जिह ॥ ९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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