Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 118
________________ ७३ दसमो संधि घत्ता जं तहे उव्यरिउ पसाहणउं . तं सच्चहे उवढोइयउं । देवय पच्चक्खाहूय मह कि अच्छरिउ ण जोइयउ ॥ ९ [५] भहिएण भाम भामिय भवणे पइसारिय पवरुज्जाण-वणे अप्पणु पुणु सुठु मणोहरए । थिउ पत्तल-बहल-लयाहरए जहिं रुपिणि स्वहो पारु गय णं मयणुज्झिय सोहग्ग-धय लक्खिाजइ भामए भामियए धण-पीण-पओहर-णामियए ४ कर-चरणाणण-लोयण-कमले तरमाण णाई लायण्ण-जले भज्जइ व मज्झे तणुयत्तण ण णिहालइ महि णव-जोठवणेण पेक्खेप्पिणु सच्चहाम णमिय जय तुहुं क-वि देवय सच्चविय तो महु सोहग्गु देहि अचल कु-सवत्तिहे दूहव-दुमहो फलु ८ घत्ता परमेसरि अणुदिणु होउ महु आणवडिच्छिउ महुमहणु । सोसु व आयरिय-पाय-वडिउ पोट्ट-वडिउ जिह थेर-तणु ॥ ९ [६] ज सुंदरि एव चवंति थिय तो जायव-णाहे विहसिकिय मायाही फेडिय अप्पणिय एह रुप्पिणि देवय कर्हि तणिय . विज्जाहरे तुहुं णव-वहुडियहे किह णमिय सवत्तिहे लहुडियहे हरि-खेड्डु सुणेपिणु तणुयडिय सच्चहे सारेपणि पाएहिं पडिय ४ तहिं अवमरे रिउ-मइ-मोहणेण पट्टविउ लेहु दुज्जोहणेण मह एविहिं विहि-मि पलंव-भुउ जो उप्पज्जेसइ पढमु सुउ तहो तणय देमि हडं अप्पणिय संभावण एह महु- त्तणिय तो जाय बोल्ल सु-मणोहरिहि उण्णय-धण-पीण-उओहरिहिं ८ घता उत्पण्णहो सुयहो पहिल्लाहो कुरव-तणय परिणताहो । - णिप्पुत्ती सीसे मुंडिएण हेट्टि ठवेवी ण्हंताहो ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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