Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 97
________________ ५२ जो गज्जैत- मत्तमायंग-तुंग-दंग्ग- णिहसणुच्छलिय-मणि-सिल-पडणवेणुठवी-महभरुक्त-कूर- कसणाहि मुक्क- फुकार- कोव - जालग्गि- जाल - माला -उलीकयामूल - विउल- सिहरो । जो करि-करड-तड- - विणिग्गंत - -मय- सरी-सोत्त-तिम्मंत-कुंज- संधाय - खोल-चिक्खिल-तल्ल-लोलंत - कोल - कोल उल - बंक - दाढा मियंक (?) ससि - समूह मणि- पझरंत - इ - णिवह - भरिय - कुहरो || [१४] जो गंधवाह - विहु-कंकेलि मल्लिया - तिलय- वडल - चंपय-पियंगु - पुण्णायणाय- परिगलिय- कुसुम- परिमल- मिड़ंत - लोलालि- वलय-झंकार - मणहरुद्देसचलिय - गंधव - मिहुण-पारद्ध-गेय- रम्मी । जहिं जे चूय- चंदणा असोय - णायचंपया हल-1 जो अवहत्थिय - छुहा- मुह-महा-मुह-गाह-गहिय-‍ -गय-गप्त-वित्त-मुत्ताउ- णित्त - णीसास-वस- समुच्छ लिय- धवल-मुत्ताइ लावली - चुण्ण-वण्ण - दंसणा - पहिल -अच्छंत -अच्छश-लिहिय-चित्तयम्मो ॥ ४ जहिं चरंति संवरा गया समुद्ध-सोंडया जहि चकोर - चायया जहि च चंचरीयया जहि च मत्त - कोइला जहिं च कम्म- दारणा तं गिरि उज्जेंतु गउ पंकयणाहु Jain Education International हरिसपुराणु तमाल-ताल- वंदना पियंगु - पारिजायया वराह-वग्घ वाणरा स-दीवि सीह - गंडया मराल - चकवायया पफुल्ल - फुल्ल- लीणया पुलिंद - भिल्ल - णाहल हे चरंति चारणा For Private & Personal Use Only १२. घन्त्ता मुएवि स-सयणु स- साहणउ । णाइ समुद्दहो पाहुणउ ॥ १३ www.jainelibrary.org

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