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जो गज्जैत- मत्तमायंग-तुंग-दंग्ग- णिहसणुच्छलिय-मणि-सिल-पडणवेणुठवी-महभरुक्त-कूर- कसणाहि मुक्क- फुकार- कोव - जालग्गि- जाल - माला -उलीकयामूल - विउल- सिहरो ।
जो करि-करड-तड- - विणिग्गंत - -मय- सरी-सोत्त-तिम्मंत-कुंज- संधाय - खोल-चिक्खिल-तल्ल-लोलंत - कोल - कोल उल - बंक - दाढा मियंक (?) ससि - समूह मणि- पझरंत - इ - णिवह - भरिय - कुहरो ||
[१४]
जो गंधवाह - विहु-कंकेलि मल्लिया - तिलय- वडल - चंपय-पियंगु - पुण्णायणाय- परिगलिय- कुसुम- परिमल- मिड़ंत - लोलालि- वलय-झंकार - मणहरुद्देसचलिय - गंधव - मिहुण-पारद्ध-गेय- रम्मी ।
जहिं जे चूय- चंदणा
असोय - णायचंपया
हल-1
जो अवहत्थिय - छुहा- मुह-महा-मुह-गाह-गहिय- -गय-गप्त-वित्त-मुत्ताउ- णित्त - णीसास-वस- समुच्छ लिय- धवल-मुत्ताइ लावली - चुण्ण-वण्ण - दंसणा - पहिल -अच्छंत -अच्छश-लिहिय-चित्तयम्मो ॥
४
जहिं चरंति संवरा गया समुद्ध-सोंडया जहि चकोर - चायया जहि च चंचरीयया
जहि च मत्त - कोइला जहिं च कम्म- दारणा
तं गिरि उज्जेंतु गउ पंकयणाहु
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हरिसपुराणु
तमाल-ताल- वंदना पियंगु - पारिजायया
वराह-वग्घ वाणरा
स-दीवि सीह - गंडया
मराल - चकवायया
पफुल्ल - फुल्ल- लीणया पुलिंद - भिल्ल - णाहल हे चरंति चारणा
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१२.
घन्त्ता
मुएवि स-सयणु स- साहणउ । णाइ समुद्दहो पाहुणउ ॥ १३
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