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सचम्रो संधि
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बहु-ईंधण - कूडागार किय चउदिसु चीयर पज्जालियड
अण्णण-रूव-संचारिणिउ शेवंति ता तर्हि देवयउ हो हरि - हलहर हो दसारुहड़ो हा जावलोयहुं जाउ खड तो कालदमेण पउच्छियउ जरसंधु को वितियसहुं वलिउ
तो तणेण भएण मुब जायव सव्व
तं णिसुणेवि वइरि - सेण्णु वलिउ तो गिरि उज्जेतु णिहालियउ अलिउल- झंकार-मणोहरउ जोठवण - विलासु णं रेवयहो गं पुण्णु-पुंजु णारायणहो पासेहि चउ महिहर चउ सरिउ अणु मज्झारि जगुत्तयउं
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हरिसु पवित्त जहिं होइ गेमि
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संचारिम-महिहर णाइ थिय
धूमाउल - जाला - मालियड महिलड बुड्ढत्तण-धारिणिउ देवइ - जसोय हा कहि गय
हा णंद णंद हा गोदुहहो हा दइव मणोरह होंतु तर ताओ कति उम्मुच्छियउ उक्खथे उप्परि उच्चलिर
घत्ता
जाला माला-भीसणहो । उप्पर चडेबि हुवासणहो ||
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घप्ता
तहो पासिउ गिरि सहस - गुणु । जहिं सिझेसइ सो-ज्जि पुणु ॥
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गउ जायव- वलु अप्पडिखलिउ कल - कोइल - कलरव - मालियउ णं वसु-वरंगण - सेहरउ चूडामणि णं वण- देवयहो णं सो ज्जि मोक्खु सावय- जणहो चड णयरिङ सुठु मणोहरिउ णं मेरु चरिट्टिर पंचमउं
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