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________________ हरिवंसपुराणु - [१०] ४ जरसंध-बंधु परिसुठु रणे आसंक जाय जायवहुं मणे लहु णासहो मंति-लोउ चवइ आयण्णइ जाम् ण चक्कवइ जइ कह-वि पत्तु तें कोवि ण-वि ण दसारुह णउ हरि-हलहर-वि ण-वि गंदु ण गोठु ण गोवियणु पइसरहु गंपि परि-विउलु वणु तं सव्वहुं हियवए क्यणु थिउ अस्थक्कए पुर-णिग्गमणु किउ अट्ठारह-कुल-कोडिहिं सहिय सिरि-कुलहर-हलहर णिविहिय एत्तहे-वि सहोयर-सोय-हउं जर-संधु णराहिउ मुच्छ गउ काह कह-वि लद्ध-चेयणु चविउ जे भाइ महारउ णिहलिउ __घत्ता तं विरसु रसंतु जइ ण णेमि जम-सासणहो । तो कल्लए देमि उप्परि झंपु हुवासणहो । पटु पइज करेप्पिणु णीसरिउ. णव कोडिउ पत्रर-तुरंगमहं दह-वारह वीस-लक्ख गयहं तेत्तियई जे लक्खइ संदणहं दह-दोत्तिय-सहस णराहिवहं अवरहं पमाणु के वुझियउ अग्गए पेसिउ अपाण-समु मगाणुलग्गु अरि-पुंगमहं [११] चउरंगाणीयालंकरित गह-रक्खस-कलिकालोवमहं . हय-जुत्तहं धुषमाण-धयहं पहरण-भरियहं रिउ-महणहं . ४ मंडल-परिपालहं पत्थिवहं गउ साहणु मरण-उरुज्झियउ ... लहुवारउ गंदणु कालदमु खगवइ पवर-भुवेगमहं ८ धता तहिं तेहए काले पडिउवयार-भाव-गयउ । सेण्णहे विच्चाले मिलियउ हरि-कुल-देवयउ ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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