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हरिवंसपुराणु
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जरसंध-बंधु परिसुठु रणे आसंक जाय जायवहुं मणे लहु णासहो मंति-लोउ चवइ आयण्णइ जाम् ण चक्कवइ जइ कह-वि पत्तु तें कोवि ण-वि ण दसारुह णउ हरि-हलहर-वि ण-वि गंदु ण गोठु ण गोवियणु पइसरहु गंपि परि-विउलु वणु तं सव्वहुं हियवए क्यणु थिउ अस्थक्कए पुर-णिग्गमणु किउ अट्ठारह-कुल-कोडिहिं सहिय सिरि-कुलहर-हलहर णिविहिय एत्तहे-वि सहोयर-सोय-हउं जर-संधु णराहिउ मुच्छ गउ काह कह-वि लद्ध-चेयणु चविउ जे भाइ महारउ णिहलिउ
__घत्ता तं विरसु रसंतु जइ ण णेमि जम-सासणहो । तो कल्लए देमि उप्परि झंपु हुवासणहो ।
पटु पइज करेप्पिणु णीसरिउ. णव कोडिउ पत्रर-तुरंगमहं दह-वारह वीस-लक्ख गयहं तेत्तियई जे लक्खइ संदणहं दह-दोत्तिय-सहस णराहिवहं अवरहं पमाणु के वुझियउ अग्गए पेसिउ अपाण-समु मगाणुलग्गु अरि-पुंगमहं
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चउरंगाणीयालंकरित गह-रक्खस-कलिकालोवमहं . हय-जुत्तहं धुषमाण-धयहं पहरण-भरियहं रिउ-महणहं . ४ मंडल-परिपालहं पत्थिवहं गउ साहणु मरण-उरुज्झियउ ... लहुवारउ गंदणु कालदमु
खगवइ पवर-भुवेगमहं ८
धता
तहिं तेहए काले पडिउवयार-भाव-गयउ । सेण्णहे विच्चाले मिलियउ हरि-कुल-देवयउ ॥
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