Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 104
________________ अट्ठमो संधि जोयण-एक्केक-पमाण-गीव संचारिम खीर-महोवही व ... अट्ठोत्तर कलस-सहास एवं उच्चाएवि ण्हवणु करति देव :. ससि-कोडि-समप्पह खीर-धार आमेल्लिय' सव्वेहिं एक-वार' गिरि-मेउ-सिहरु रेल्लंत धाइ संचारिम सायर-वेल णाई घत्ता हाइ णाहु ग्रहावेइ पुरंदरु . · उवहि अणिहिउ वियडउ मंदरु । सुरयणु खीरु वहंतु ण थक्कइ तं अहिसेउ कु वण्णेवि सकइ ॥९ ४ अहिसिंचिउ एम तिलोय-णाहु संकंदणु होप्पिणु सहस-वाहु संतेउरु सामरु सट्टहासु उठवेल्लइ अग्गए जिणवरासु णच्चतहो गयणावलि विहाइ रइयवण-कुवलय-माल णाई णच्चंतहो णह-मणि विष्फुरंति पज्जालिय णाई पईव-पंति णच्चंतए सरहसे अमर-राए णिवडइ तारायणु भूमि-भाए आसीविस-विसहर विसु मुयंति पक्खुहिय-महोवहि-जल ण मंति टलटलइ चलइ महि णिरवसेस फुटुंति पडति य गिरि-पएस कह-कह-वि कडत्ति ण मेरु भग्गु टलटलिहूओ-वि असेसु सग्गु . । अससु सग्गु ८ घत्ता एम पणच्चेवि अग्गए णेमिहे थुइ आढत्त जगत्तय-सामिहे । । जिणवर णिरुवम गुण तुम्हारा को सकइ परिगणेवि भडारा ॥ ९ [१२] गुण गणेविण सक्कमि मंद-बुद्धि जइ बोल्लमि तो ण-वि सह-सुद्धि जइ उवम देमि तो जगे जे-जि णस्थि तिहुवणहो ण रूतू सहि भव-पमंथि: अलिएण-वि पहु रूसंति साव संतेहिं गुणेहि-मि थुणइ ताव ण विसेसणु जेण विसेसु कोइ असरिस-उवमहिं ण कव्वु होइ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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