Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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हरिवंसपुराणु
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णाणालंकार-विहूसि यंग णाणा-मउडंकिय-उत्तमंग . णाणा-धय-णाणा-जाण-रिद्धि णाणायवत्तणा-चामर- समिद्धि णाणा देवंगारिय-गत्त वारवइ खणखद्रेण पत्त जिणु लइउ दुकूल-पडंतरेण चूडामणि णाई पुरंदरेण
घत्ता मेरुहे मत्थए ठविउ भडारउ तेय-पिंडु तम-तिमिर-णिवारउ । स्त्रीर-समुह होइ णिज्झाइउ णं अहिसेय-पईवउ लाइउ ।। ९
[९] अप्फालिउ ण्हवणारंभ-तूरु पडिस तिहुवण-भवण-पुरु दुमु-दुमु-दुमंत-दुंदुहि-वमालु घुमु-घुमु-घुमंत-घुम्मुक्क-तालु झि-झिं-करंति-सिक्किरि-णिणाउ सिमि-सिमि-सिमंत-झलरि-णिहाउ सल-सल-सलंत-कंसाल-जुयलु गुं-गुंजमाणु गुंजतु मुहलु कण-कण-कणंतु कणकणइ कोसु डम-डम-डमंत-डमरुय-णिघोसु दा-दो-दो-दोत-मउंद-णद्दु त्रां-त्रां-परिछित्त-हुडुक्क-सद्दु टंटत-टिविलु डंडत-डक्कु भंभंत-भंभु ढंढंत-ढक्कु अवराइ-मि हयई विचित्तयाई अहिसेय-काले वाइत्तयाई ८
घत्ता कोडा-कोडि-तूर-रव-भरियउ जइ-वि वाय-बलएण ण धरियउ । तो सहसद्दु (त्ति) माए सच्चोयरु तिहुवणु जंतु आसि सय-सकरु ॥९
[१०] अहिसेय-कलस हरिसिय-मणेहिं उच्चाइय दस दसहि-मि जणेहिं सुरव-सिहि-वइबस-णिसियरेहिं वरुणाणिल-वइवस(१)-णीसरेहि धरणिंद-चंद-णामंकिएहिं मणि-कुंडल-मउडालंफिएहिं अवरेहि-मि अवर महा-विसाल अट्ठट्ठ-जोयणभंतराल
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