Book Title: Ritthnemichariyam Part 1 Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani Publisher: Prakrit Text Society AhmedabadPage 96
________________ सचम्रो संधि 4. बहु-ईंधण - कूडागार किय चउदिसु चीयर पज्जालियड अण्णण-रूव-संचारिणिउ शेवंति ता तर्हि देवयउ हो हरि - हलहर हो दसारुहड़ो हा जावलोयहुं जाउ खड तो कालदमेण पउच्छियउ जरसंधु को वितियसहुं वलिउ तो तणेण भएण मुब जायव सव्व तं णिसुणेवि वइरि - सेण्णु वलिउ तो गिरि उज्जेतु णिहालियउ अलिउल- झंकार-मणोहरउ जोठवण - विलासु णं रेवयहो गं पुण्णु-पुंजु णारायणहो पासेहि चउ महिहर चउ सरिउ अणु मज्झारि जगुत्तयउं Jain Education International हरिसु पवित्त जहिं होइ गेमि [१२] संचारिम-महिहर णाइ थिय धूमाउल - जाला - मालियड महिलड बुड्ढत्तण-धारिणिउ देवइ - जसोय हा कहि गय हा णंद णंद हा गोदुहहो हा दइव मणोरह होंतु तर ताओ कति उम्मुच्छियउ उक्खथे उप्परि उच्चलिर घत्ता जाला माला-भीसणहो । उप्पर चडेबि हुवासणहो || - घप्ता तहो पासिउ गिरि सहस - गुणु । जहिं सिझेसइ सो-ज्जि पुणु ॥ .५१ [ १३ ] गउ जायव- वलु अप्पडिखलिउ कल - कोइल - कलरव - मालियउ णं वसु-वरंगण - सेहरउ चूडामणि णं वण- देवयहो णं सो ज्जि मोक्खु सावय- जणहो चड णयरिङ सुठु मणोहरिउ णं मेरु चरिट्टिर पंचमउं For Private & Personal Use Only ४ ४ ८ ९ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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