Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 49
________________ हरिवंशपुराणु, [६] तो परम-रिसिहे सुपइट्ठियहो । उज्जाणे गंधमायणे ठियहो सउरीपुरि-सीमावासियहो णर-णाय-सुरिंद णमंसियहो सयलामल-केवल-कुलहरहो छज्जीव-णिकाय-दयावरहो भावलयालिंगिय-बिग्गहहो दुरुझिय-सयल-परिगहहो दरिसाविय-परम-मोक्ख-पहहो सुर-वंदणहत्तिए आय तहो तहिं अंधकविठ्ठि णराहिवइ सहुं णरवइविठे एक-मइ णिसुणेप्पिणु णियय-भवंतरई णिय-थामुप्पत्ति-परंपरई पभणइ मई णरए पडंतु धरे तव-चरण-गहणे पसाउ करे ८ घत्ता असरणे अथिरे असारे एत्थु खेत्ते णउ रम्मइ । जहिं अजरामर-लोउ तहो देसहो वरि गम्मइ ॥ [७] ते परम-भाव-सब्भाव-रय दिक्खंकिय सूर-वीर-तणया सउरियहिं समुद्दिविजउ थियउ महुराहिउ उग्गसेणु कियउ अच्छति जाम मुंजंति धर वसुएवं ताम अणंग-सर परिपेसिय णायरियायणहो क-वि अहरु समप्पइ अंजणहो ४. क-वि देइ अलत्तउ णिय-णयणे मुच्छिज्जइ झिज्जइ सणे जे सणे क-वि छोडइ णीवी-वंधणउ ढिल्लारउ करइ पइंधणउं क-वि वालु लेइ विवरीय-तणु मुहु अण्णहि अण्णहि देइ थणु एक्केकावयवे विलीण क-वि. वसुएउ असेसु-वि दिठु ण-वि ८ .. घत्ता जहिं जहे गय दिट्ठि ताहे तहिं जे विथक्कइ । दुव्वल ढोरि व पंके पडिय ण उठेवि सकइ ॥९ 6, 9a. भ. ण सुरम्मइ. .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144