Book Title: Ritthnemichariyam Part 1 Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani Publisher: Prakrit Text Society AhmedabadPage 85
________________ हरिवंसपुराणु [७] ता रोहिणि-देवइ-तणुरुहेहिं अवरेहिं मिलिएहिं गो-दुहेहि लक्खिज्जइ धोवउ धोवमाणु किय-वत्थारूढ-रयावसाणु संकरिसणु कहइ जणदणासु दुहम-दणु-देह-विमहणासु एहु हणइ कडिल्लई सिलहिं जेम चिरु देवइ-जायई कंसु तेम ५ तं वयणु सुणेवि महुसूयणेण जम-पंगण-पाविय-पूयणेण स-सयड-जमलज्जुण-मोडणेण कालिय-सिर-सेहर-तोडणेण उत्थंधिय-गिरि-गोवद्धणेण वसुएव-वंस-संवद्धणेण परिहाण-सयाई लेवावियाई णं मंड मंड रिउ-जीषियाइं ८ घत्ता वलए- सामउं वासु . कण्हे कणय-समुज्जलउं । णं कड्ढिउ कंसहो पित्तु दीसइ कालउं पीयलउं ॥ [८] सिरि-कुलहर-हलहर चलिय वे-वि गामीण-गोव किय मल्ल जे-वि थिर-थोर-महाभुय वियड-वच्छ गाणाविह-सिचय-णिवद्ध-कच्छ लायण्ण-महाजल भरिय-भुअण मुह-ससहर-कर-पंडुरिय-गयण चल-चलणुच्चालिय-अचल-वीढ दामोयर-उर-सिर-पसर-लीढ ४ अरफोडण-रव-वहिरिय-दियंत कंसोवरि गय णं वहु कयंत सयलिंधि णिहालिय तेहिं तावं मंथर-संचार महाणुभाव सव्वालंकार विहूसियंगि लडहत्तणे का-वि अउठव भंगि णिय-णाहहो किर मंडणउं णेइ णारायणु भायणु मंड लेइ घत्ता उद्दालेवि महुमहणेण गोवहं दिण्णु पसाहणउं । णं लइउ विहंजेवि तेहिं जीविउ चाणूरहो तणउं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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