Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text ________________
सत्तमो संधि
विणिवाइए कंसे जरसंघहो गंपि
दूसह-दुक्ख-परव्वसए । धाहाविउ जीवंजसए ।
[१] जीवंजस कंस-विओय-हय जणणहो जरसंधहो पासु गय दुक्खाउर दुम्मण-दुम्मणिय वहलंसु-जलोल्लिय-लोयणिय विणिवद्ध-वेणि वद्धामरिस कर-पल्लव-छाइय-थण-कलस हय-सोह वि सोहइ रूववइ णिय-गइ-गोवाविय-हंसगइ णह-किरण-करालिय-सयल-दिस मुहयंद-पाय-पंडुरिय-णिस कररुह-दह-दपण-दिट्ठ-मुह मुह-कमलोहामिय-अंबुरुह अंबुरुह-समप्पह-णयण-जुय णव-कोमल-कोसुम-दाम-भुय णं णव-तरु-अहिणव-साहुलिय कर-पल्लव-णह-कुसुमावलिय
घत्ता
परितायहि ताय हउं एह अवत्थ
महुराहिवेण मरंतरण । पाविय पई जीवंतरण ।।
मगहाहिउ तो हेवाइयउ कहि केण कयंतु णिहालियउ उप्पाइउ जमहो केण मरणु के पक्ख समुक्खय खगवइहे णिय-वइवरु ताए तासु कहिउ तो दिण्ण समर-भर-कंधरेण
[२] कहि केण कंसु विणिवाइयउ के सुरवइ सग्गहो टालियउ किट केण महोरग-विस-जरणु अवहरिउ केण हरि भगवइहे पर-जणण-विणासु एक्कु रहिउ पालिय-ति-खंड-मंडिय धरेण
४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144