Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 77
________________ हरिवंशपुराणु घन सो थणु दुद्ध-धार-धवलु हरि-उहय-करंतरे माइयउ पहिलारउ असुराहयणे णं पंचजण्णु मुहे लाइयउ ॥ [५] पूयण पण्हुवंति आयड्ढइ थण्णु थणंतु थणद्धउ कडूढइ पूयण पण्हुवंति भेसावइ भद्दिउ भीम भिउडि दरिसावइ पूयण पण्हुवंति पवियंभइ महुमहु रहिर-पाणु पारंभइ पूयण पण्हुवंति किर मारइ णिठुर-मुट्ठि विठु बढार ४ पूयण पउर-करेहिं पडिपेलइ डसइ जणदणु गाहु ण मेल्लइ पूयण पिज्जमाण आकंदइ हरि धुत्तत्तणेण परियंदइ सोणिय-चीसढ-घाणिए मत्तउ तो-वि पओहरु ण-वि परिचत्तठ ८ पत्ता खोरु-वि रुहिरु-वि पूयणहे कड्ढिउ केसवेण रउद्दे। गंणइ-मुहेण व सिंधुहे आकरिसिउ सलिलु समुरें॥ ९ [६] णिसुणेवि सङ् रउद्दकुकंदिरु ण? जसोय स-सल्झस मंदिरु वालु ण रक्खसु चित्तु चमकइ पूयण विरसु रसंति ण थक्कइ वासुएव वसुएवहो गंदण हरि उविंद गोविंद जणदण पउमणाह माहव महुसूयण कंसहो तणिय विज्ज हउं पूयण ४ गइय ण एमि जामि मं मारहि थण-वण-वेयण-पसरु णिवारहि दुक्खु दुक्खु आमेल्लिय वाले तहे गोठेंगणे थोवए काले णव-णवणीय-हत्थु हरि-अंगणे अच्छइ जाव ताव गयणंगणे माश्य देवय कंसाएसे सुंसुवंति वर-वायस-वेसेंट घत्ता जाणिउ एंतु जणदणेण खगु माया-रूव-पवंचु । करेवि अयंगमु घाल्लियउ णिप्पेहुण तोडिय-चंचु ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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