Book Title: Ritthnemichariyam Part 1 Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani Publisher: Prakrit Text Society AhmedabadPage 76
________________ पंचमो संधि वद्धइ गंद-गोठे जो वालउ विकमु को-वि तासु असरालउ । घोरण-सहे अंबरु फुट्टइ पिहिवि अभुत्ती दुक्करु छुट्टइ॥ पत्ता दुक्कु पमाणहो रिसि-बयणु गोठेंगणे वड्ढइ विट्ठ । अज्जु सु महुर-णराहिषहो गं हियवए सल्लु पइदछु । ८ ९ जं उप्पण्णु गोठे दामोयरु संकिउ महुराउर-परमेसर आयउ देवयाउ एत्यंतरे सिद्धउ जाउ पुठव-जम्मंतरे जइयहु कंसु होंतु पव्वइयउ दुद्धरु घोरु वोरु तउ लइयउ चंदायणु चरंतु सुह-कारणु मासहो मासहो एक्कसि पारणु ४ जाणेवि उग्गसेणे महुराए भिक्ख णिवारिय पुरे अणुराएं महु जे णिहेलणे थाउ भडारउ सो-वि पइछु अणंग-वियोरउ मत्त-गइंदु अग्गि-कूवारउ ते अ-लाहु तहो जाउ ति-वारउ मासे चउत्थए जाव पईसइ मुच्छ तमंधयारु ते दीसइ ८ घत्ता केण-वि कोहुप्याइयउ पत्थिवेण महारिसि मारियउ । आएं को अवराहु किउ जे पुरे पइसारु णिवारियल ॥ ९ [४] सिद्धउ देवयाउ तहिं अवसरे देइ आएसु भणति खणंतरे वासुएव-वलएव मुएप्पिणु दिज्जइ अवरु कवणु बंधेप्पिणु उग्गसेतु किं पलयहो णिज्जउ किं समसुत्ती पुरे पाडिज्जउ चुच्चइ जइवरेण एत्यंतरे एउ करिज्जहु अण्ण-भवंतरे ४ अम्हई ताउ कंस सुपसण्ण मग्गि मग्गि किंचि-वि-तावण्णउं पभणइ माहुरि-पय-परिपालउ वद्धइ गंदहो घरे जो वालर तं विणिवायहु महु आएसें पूयण धाइय धाई-वेसे सं-विसु पओहरु ढोइउ वालहो णं अप्पाणु छुद्ध मुहे कालहो ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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