Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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[42] कुछ संकेत दिवा हैकासु वि खंधहरी उप्परि नेत्ती कासु वि लोई लक्खारत्ती कासु वि सीसे लिंज धराली कासु वि चुण्णी फुल्लडियाली कासु वि तुंगु मउडु सुविसुठउ ओढणु वोडु कह-मि मंजिउ सव्वहं सीसे रत्ते बद्धा
रीरी कडिय कडाकडि मुद्दा किसी के खंधे पर 'नेत्ती' (नेत्र वस्त्र की साडी) थी तो किसी की 'लोई' (कमली) लाख जैसी रक्तवर्ण थी। किसी के सिर पर धारदार 'लिंज' (नीज :) थी तो किसी की चुन्नी फूलवाली थी । किसी का मौर ऊँचा और दर्शनीय था तो किसी की ओढ़नी और 'बोड' मजीठी थे । सभी के सिर ‘पर लाल (वखण्ड ?) बंधा हुआ था और वे पीतल के कडे, कलियाँ और मुद्रिका पहनी हुई थी।'
नन्द-यशोदा और गोपियों का दुलारा बालकृष्ण भागवतकार से लेकर अनेकानेक कवियों का अक्षयरस काव्य विषय रहा है। इसका चरम शिखर हम सूर में पाते है। तो यहाँ धवल के भी कृष्णक्रीडा के वर्णन के दो कडवक हम ५४ वी सन्धि में से देखें
[२] बह-लक्खण-गुण-पुण्ण-विसालउ जिम जिम विद्धि जाइ सो वालउ धूइहिं होइ णिरारिउ चंगउ दिद्विहिं अमियहिं सिंचइ अंगउ वडूढिय जोव्वणस्थ जा वाली जा जा कण्हु णियइ गोवाली जेण मिसेण तेण मुहु जोवइ पुणु उच्छंगि करिवि थणु ढोवइ कणिहि कण्णाहरणई रुप्पिय करहिं कडय सुमणोहर हेमिय गलि कंठुल्लियाहिं सोहंतिहिं पाइहिं घुग्घुराहिं वज्जतिहिं कडियलि सोमालिय सो सोहइ वालउ सव्वहं मणु वि सु मोहइ जिम जिम कण्हु वइदछु सु थाइय लइ जसोयहु तोसु ण माइय
घत्ता
जा उच्छंगि लेइ करइ उण्णइय इ सरइ जाणइ णिमिसु ण मुच्चइ । रयण-सुवण्ण-णिहाणु जिम पुण्णेहिं तिम जणणहु अइयारे रुच्चइ ॥
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