Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 41
________________ [40] से गिर रहा है। सरिता बहता हुई खोह को भर देती है। तडतडा कर तडित् पडती है जिससे पहाड फूटता है। मयूर नाच रहा है। तरुओं को घुमाता पवन चल रहा हैं । गोकुल के सभी जलस्थल भयत्रस्त होकर थरथराते हुए चीखने लगे । उनको मरणभय से ग्रस्त देखकर सरलाक्षी जयलक्ष्मी के लिये सतृष्ण धीरवीर कृष्ण ने सुरप्रशस्त भुजयुगल से विशाल गोवर्धन पर्वत उठाया और लोगों को धृति बंधाई । गोवर्धन को उखाड देने से अन्धकार से भरा हुआ पाताल-विवर प्रगट हुआ जिसमें फणीन्द्रों का समूह फुफकारते थे, विष उगलते थे, सलसलते और घुमराते थे। त्रस्त होकर हिरण के शिशु भागने लगे । कातर वनचर गिरकर चिल्लाने लगे। हिंसक चाण्डालों ने चंड शर फेंक दिये । परवश तापसलोग भय. जर्जर हो उठे । गौओं का वर्धन करने वाले गोवर्धन ने राज्यलक्ष्मी का भार जैसा समझकर गिरि गोवर्धन उठाया। ७. हरिभद्र और धवल पुष्पदन्त के बाद अपभ्रंश कृष्णकाव्य की परम्परा में दो और कवि उल्लेखनीय हैं। वे हैं हरिभद्र और धवल । धवल की कृति अभी तो अप्रकाशित हैं। फिर भी एकाध हस्तलिखित प्रति के आधार पर यहाँ उसका कुछ परिचय दिया जाता है। हरिभद्र ११६० में रचित हरिभद्रसूरि का 'नेमिनाहचरिउ' प्रधानतः रड्डा छन्द में निवद्ध करीब तीन हजार छन्दों का महाकाव्य है । उसके २२८७ वे छन्द से लेकर आगे शताधिक छन्दों में कृष्णजन्म से कसवध तक की कथा संक्षेप में दो गई है। कतिपय स्थलों पर वर्णन में उत्कटता सधी है। हरिभद्र ने मल्लयुद्ध के प्रसङ्ग को महत्त्व देकर बतलाया है और वहाँ पर उसकी कवित्व. शक्ति का हम परिचय पाते है। कृष्ण की हत्या के लिए भेजे जाने वाले वृषभ, खर, तुरंग और मेष के चित्र भी दृढ रेखाओं से अंकित किए गए हैं। धवल कवि धवल का 'हरिवंशपुराण' ग्यारहवीं शताब्दी के बाद की रचना है। समय ठीक निर्णीत नहीं हुआ है फिर भी 'हरिवंशपुराण' की भाषो १. धवल के 'हरिवंश' का परिचय यहा पर जयपुर के दिगम्बर अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी शोध संस्थान के संग्रह की हस्तप्रत के आधार पर दिया है। प्रति के उपयोग करने की अनुमति के लिये मैं शोधसंस्थान का कृतज्ञ. हैं। प्रति का पाठ कई स्थलों पर अशुद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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