Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 36
________________ [35] इय-सोह वि सोहइ रुववइ । ( रिट्ठ०, ७-१-४) 'रूपस्विनी शोभाहीन होने पर भी सुहाती है ।' ६. पुष्पदन्त चतुर्मुख और स्वयम्भू के स्तर के अपभ्रंश महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित 'महापुराण' (रचनाकाल ई० ९५७ - ९६५ ) की सन्धियाँ ८१ से ९२ जैन हरिवंश को दी गई है । सं० ८४ में वासुदेवजन्म का, ७५ में नारायण की बालक्रीडा का और ८६ में कंस एवं चाणूर के संहार का विषय है । वर्णनशैली, भाषा एवं छन्दोरचना सम्बन्धित असाधारण सामर्थ्य से सम्पन्न पुष्पदन्त ने इन तीन सन्धियों में भी उत्कृष्ट काव्यखण्डों का निर्माण किया है । उसने कृष्ण की बालक्रीड़ा का निरूपण पुरोगामी कवियों से अधिक विस्तार और सतर्कता से किया है । पूतना, अश्व, गर्दभ एवम् यमलार्जुन के उपद्रवों के वर्णन में (८५, ९, १०, ११) अष्टमात्रिक तथा वर्षावन में (८५ -१६) पंचमात्रिक लघु छन्दों का उसका प्रयोग सफल रहा है और इससे लय का सहारा लेकर चारु वर्ण-चित्र निर्माण करने की अपनी शक्ति की वह प्रतीति कराता है । ८५-१२ में प्रस्तुत अरिष्टासुर का चित्र एवम् ८५ - १९ में प्रस्तुत गोपवेशवर्णन भी ध्यानाई हैं । पुष्पदन्त के युद्धवर्णनसामर्थ्य के अच्छे खण्ड (८६-८ कडवक में कंस कृष्ण युद्ध) और ८८-५ से लेकर १५ कडवक तक के खण्ड में (कृष्णजरासन्ध - युद्ध) हम पाते हैं । कुछ चुने हुए अंश नीचे दिए गए हैं । नवजात कृष्ण को ले जाते हुए वसुदेव का कालिन्दी दर्शन : ता कालिंद तेहि अवलोइय णं सरि-रूवु धरिवि थिय महियलि गारायण-तणु-पह - पंती विव महि - मयणाहि - रइय-रेहा इव महिर - दंति - दाण- रेहा इत्र वसु - णिलीण - मेहमाला इव Jain Education International मंथर - वारि-गामिणी घण-तम- जोणि जामिणी अंजणगिरि-वरिद-कंती विव बहु-तरंग जर- हय-देहा इव कंसराय-जीविय- मेरा इव माम स-मुत्ताहल बाला वइ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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