Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 30
________________ [29] ६-२ उद्धाहउ विसहरु विसम-लीलु कलि-काल-कयंत-रउद्द-सीलु कालिंदि-पमाण-पसारियंगु विपरीय-चलिय-जलचर-तरंगु विष्फुरिय-फणामणि-किरण-जालु फुक्कार-भरिय-भुवणंतरालु मुह-कुहर-मरुद्धय-महिहरिंदु णह-मग्गि झुलुक्किय-अमर-बिंदु विस-दूसिउ जउणा-जल-पवाहु अवगणिय-पंकय-णाह-णाहु दप्पुद्धरु उद्ध-फगालि-चंडु णं सरिए पसारिउ बाहु-दंडु उप्पण्णउ पण्णउ अजउ को-वि पहारज्जहि णाह णिसंकु होवि तो विसम विसुग्गारुग्गमेण · हरि वेढिउ उरि उरजंगमेण घत्ता जउणा-दहे एक्कु मुहुन्तु केसउ सलील-कोल करइ ; रयणायरे मंदरु णाई विसहर-वेदिउ संचाइ ।। 'विषम लीला करता हुआ विषधर कृष्ण के प्रति लपका । कलिकाल - और कृतान्त जैसे रौद्र कालिय ने कालिन्दि जितनी देह फैलायी । जलचर और जलतरंग उलटे गमन करने लगे । उसको फणामणि से किरणजाल का विस्फुरण होने लगा। फुत्कार से वह भुवनों के अन्तराल को भर देता था । उसके मुखकुहर से निकलते हुए निःश्वासों की झपट से पहाड भी कांपते थे। उसकी दृष्टि को अग्निज्वाला से देवगण भी जलते थे । उसके विष से यमुना का जलप्रवाह दूषित हो गया । कृष्ण की अवगणना करके दर्पोद्धत कालिय ने अपनी प्रचण्ड फणाबलि उंची उठाई। मानों यमुना ने अपने भुजदण्ड पसारे । 'यह कोई अजेय पन्नग उत्पन्न हुआ है। उस पर हे नाथ, निःशंक होकर प्रहार करो' (सब कहने लगे)। उस समय उग्र विषवमन करते हुए उरग ने हरि के उरःप्रदेश को लपेट लिया। यमुनाहूद में एक मुहूर्त केशव जलक्रीड़ा करने लगे । विषधर से वेष्टित हुए वे सागर में . मन्दराचल की तरह घूमने लगे।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144