Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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[28] कल्पना को उडान की एवं उनके वर्णनसामर्थ्य की हम अच्छी झलक पाते है । उस अंश को भूल और अनुवाद के साथ में यहाँ पर प्रस्तुत कर रहा हूं।
मुसुमूरिय-मायासंदणेण लक्खिज्जइ जउण जणहणेण अलि-वलय-जलय-कुवलय-सवण्ण रवि-भइयए णं णिसि तलि णिसण्ण णं वसुह-वरंगण-रोमराइ णं दड्ढ-मयण-कढणिविहाइ गं इंदोल-मणि-भरिय-खाणि णं कालियाहि-अहिमाण-हाणि तहे काले णिहाला आय सव्व गामीण गोव जायव सगठव थिय भाषण देव धरित्ति-मग्गे जोइज्जइ साहसु सुरेहिं सग्गे आडोहिउ दणु-तणु-महणेण जउणा-दहु देवइ-णंदणेण संखोहिय जलयर जलु विसटु णोसरिउ सप्पु पसरिय-मरटटु
घत्ता केसर कालिउ कालिंदि-जलु तिण्णि-वि मिलियई कालाई ।
अंधारीहूयउ सव्वु काई णियंतु णिहालाई ॥ 'मायाशकट के संहारक जनार्दन को भ्रमरकुल, मेघ और कुवलय के वर्ण को धारण करने वाली यमुना दृष्टिगोचर हुई. मानों सूर्य भय से भूतल पर आकर निशा बैठ गई हो । मानों वसुधासुन्दरी की रोमालि । मानों इन्द्रनील मणि से पूर्ण खानि । मानों कालियनाग की मानहानि । उस समय सभी ग्रामीण गोपजन एवं गविष्ठ यादव कृष्ण के पराक्रम देखने को आए । देव भो अन्तरिक्ष एवं स्वर्ग में ठहर कर कृष्ण का साहस देख रहे थे। दानवमर्दन कर देवकीनन्दन ने यमुना का हूद विक्षुब्ध कर डाला । • सभी जलचरों में खलबली मच गई। जलराशि छिन्न-विच्छिन्न हो गयी। माविष्ठ सर्प बाहर निकला । कृष्ण, कालिय एवं कालिन्दीजल तीनों श्याम 'पदार्थ एक दूसरे में सम्मिलित हो गए । सब कुछ अन्धकार-सा कालाकलूटा हो गया तो अब देखने वाले क्या देखे?
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