Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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[20] और एक प्रचण्ड अट्टहास किया । आक्रमण करने को खडी हुई कंस की सेना को बलराम ने मंच का खंभा उखाड़ कर प्रहार करके भगा दिया । वहाँ पर कृष्ण पिता और स्वजनों से मिले । उग्रसेन को बन्धनमुक्त किया
और उसको मथुरा के सिंहासन पर फिर से बैठाया । जीवद्यशा जरासन्ध के पास जा पहुंची । कृष्ण ने विद्याधरकुमारी सत्यभामा' के साथ और बलराम ने रेवती के साथ विवाह किया ।
कंसवध पर बदला लेने के लिए जरासन्ध ने अपने पुत्र कालयवन को बडी सेना के साथ भेजा । सत्रह बार यादवों के साथ युद्ध करके अन्त में वह मारा गया। तत्पश्चात् जरासन्ध का भाई अपराजित तीन सो छियालिस बार युद्ध करके कृष्ण के बाणों से मारा गया । तब प्रचण्ड सेना लेकर स्वयं जरासन्ध ने मथुरा की ओर प्रयाण किया। इसके भय से अठारह कोटि यादव मथुरा छोडकर पश्चिम दिशा की और चल पडे । जरासन्ध ने उनका पीछा किया। विन्ध्याचल के पास जब जरासन्ध आया तब कृष्ण की सहायक देवियों ने अनेक चिताएं रची और वृद्धा के रूप धारणकर उन्होंने जरासन्ध को समझा दिया कि उससे भागते हुए यादव कहीं शरण न पाने से सभी जल कर मर गए। इस बात को सही मान कर जरासन्ध वापिस लौटा । जब यादव समुद्र के निकट पहुंचे तब कृष्ण और बलराम की तपश्चर्या से प्रभावित इन्द्र ने गौतम देव को मेजा । उसने समुद्र कों दूर हटाया । वहां पर समुद्रविजय के पुत्र एवं भावी तीर्थकर नेमिनाथ की भक्ति से प्रेरित कुबेर ने द्वारका नगरी का निर्माण किया । उसने बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौडी, वनमय कोट से युक्त इस नगरी में
१. विव. के कनुसार सत्यभामा कंस की हो बहन थी। २. त्रिच. के अनुसार पहले जरासन्ध समुद्रविजय के पास कृष्ण और बलराम को
उसको सौप देने का आदेश भेजता है। समुद्रबिजय इस आदेश का तिरस्कार करता है । बाद में ज्योतिषी की सलाह से यादव मथुरा छोडकर चल देते है। जरासन्ध का पुत्र काल यादवों को मारने की प्रतिज्ञा करके अपने भाई यवन और सहदेव को साथ लेकर यादवों का पीछा करता है । रक्षक देवताओं से दिए गए यादवों के अग्निप्रवेश के समाचार सही मान कर वह प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए स्वयं अग्निप्रवेश करता है ।
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