Book Title: Ritthnemichariyam Part 1
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 22
________________ [21] सभी के लिए योग्य आवास बनाये और कृष्ण को अनेक दिव्य शस्त्रास्त्र, रथ आदि भेंट किये। ___ यहां पर पूर्वकृष्णचरित्र समाप्त होता है। उत्तरकृष्णचरित्र के मुख्यतः निम्न विषय है : रुक्मिणीहरण, शाम्बप्रद्युम्नउत्पत्ति, जाम्बवतीपरिणय, कुरुवंशोत्पत्ति, द्रौपदीलाभ, कोचकवध, प्रद्युम्नसमागम, शाम्बविवाह, जरासन्ध के साथ युद्ध एवं पाण्डव-कौरव-युद्ध, कृष्ण का विजयोत्सव, द्रौपदीहरण, दक्षिण मथुरा-स्थापन, नेमिनिष्क्रमण, केवलज्ञानप्राप्ति, धर्मोपदेश, विहार, द्वारावतीविनाश, कृष्ण की मृत्यु, बलराम की तपश्चर्या, पाण्डवों को प्रव्रज्या और नेमिनिर्वाण । भिन्न-भिन्न अपभ्रंश कृतियों में उपलब्ध उपर्युक्त रूपरेखा में कतिपय बातों में अन्तर पाया जाता है। आगे यथाप्रसंग उसका निर्देश किया जायेगा। अब हम कृष्णविषयक विभिन्न अपभ्रंश रचनाओं का परिचय देगे। अपभ्रंश साहित्य में अनेक कवियों की कृष्णविषयक रचनाएं हैं। जैन कवियों में नेमिनाथ का चरित्र अत्यन्त रूढ और प्रिय विषय था और कृष्णचरित्र उसीका एक अंश होने से अपभ्रंश में कृष्णकाव्यों की कोई कमी नहीं है। यहां पर एक सामान्य परिचय देने की दृष्टि से कुछ प्रमुख अपभ्रश कवियों की कृष्णविषयक रचनाओं का विवेचन और कुछ विशिष्ट अंश प्रस्तुत किया जाता है। इनमें स्वयम्भू, पुष्पदन्त, हरिभद्र और धवल की रचनाएं समाविष्ट हैं। धवल की कृति अभी अप्रकाशित है। हस्तपति के आधार पर उनका परिचय यहाँ पर दिया जा रहा है । ४. स्वयम्भू के पूर्व नवी शताब्दी के अपभ्रंश महाकवि स्वयम्भू के पूर्व की कृणविषयक अपभ्रंश रचनाओं के बारे में हमारे पास जो ज्ञातव्य है वह अत्यन्त स्वल्प और त्रुटिपूर्ण है । उसके लिए जो आधार मिलते है वे ये हैं-स्वयम्भू Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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