Book Title: Rajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Author(s): Premsinh Rathod
Publisher: Rajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
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श्री राजेन्द्र सूरिजी ने 'अभिधान राजेन्द्र कोष' को निर्मित कर शिक्षित समाज पर महान् उपकार किया है। वे शिक्षित हैं, विद्वान हैं, उन्होंने हर क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उन्होंने धर्म और समाज के लिए बहुत कुछ किया है। आप ‘राजेन्द्र-ज्योति का प्रकाशन कर रहे हैं यह उचित है। इतनी कृतज्ञता तो होनी ही चाहिए। साधु-सन्त इससे अधिक क्या चाहते हैं ?
__ उनके कार्यों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । शोलापुर
-वर्धमान पा. शास्त्री
बैंगलोर
दिनांक १ अगस्त, '७७
निर्भय, निडर, अजातशत्रु रत्नगर्भा भारत-भूमि के अनमोल रत्न, रत्नसम्राट् परमपूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. के जन्म के १५० वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में उनको मेरी नतमस्तक श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
-सी. बी. भगत,
(महामंत्री)
पूज्य श्री राजेन्द्र सूरिजी म. सा. का जीवन साधु-समाज के लिए प्रेरणात्मक रहा है। वे शिथिलाचार के विरुद्ध थे और इसी वजह से वे आचार्य धरणेन्द्र सूरिजी से अलग होकर धाणेराव श्री प्रमोद विजयजी के पास आहोर गए और वहाँ उन्हें संवत् १९३० वैशाख सुदी ५ को आचार्य पद से अलंकृत किया गया ।
त्यागी जीवन के साथ उन्होंने तप को भी अधिक महत्व दिया और अभिग्रह लिए। तपस्या के साथ-साथ उन्होंने योग-राधना भी की, जिसके चमत्कार के कई उदाहरण उनके जीवन से प्राप्त होते हैं।
परमपूज्य आचार्यश्री ने अनुपम साहित्य-सेवा की है। उन्होंने जो ‘राजेन्द्र-कोष' बनाया है, वह संस्कृत व प्राकृत के अध्ययन के लिए एक आवश्यक पूर्ति है। इस ग्रंथ की महिमा अत्यधिक है, जिसका कोई सानी नहीं है ।
पूज्य आचार्यजी का व्यक्तित्व इतना प्रमावशाली था कि जो उनके सम्पर्क में आता वह अपने को धन्य ही नहीं मानता था, वरन् वह जो मुख-प्रेरणा पाता था, वह उसके लिए व उसके सम्पर्क में आने वालों के लिए 'ज्योति' का काम करती थी।
कुछ वर्ष पूर्व मैं सहकुटुम्ब अपनी कार द्वारा मध्यभारत के तीर्थों के दर्शनार्थ गया था। राजगढ़ में कुछ मित्रों से मिलकर रात्रि विश्राम श्री मोहनखेड़ा किया। वहाँ के शान्त वातावरण ने हमें अत्यन्त मुग्ध कर दिया। समाधि-स्थल के दर्शन से इस महान् विभूति के जीवन का दिग्दर्शन प्राप्त हुआ और हम कृतार्थ हुए।
विश्व के कल्याण के लिए ऐसी दिव्य आत्माओं के जन्म के होते रहें-यह एक अभिलाषा है।
-पुखराज सिंघी
सिरोही (राज.) दिनांक ५-८-७७
राजेन्द्र-ज्योति
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