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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 30 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
ज्ञान-आराधना समीचीन नहीं हैं मोक्षमार्गी जीव बंध के हेतुओं से बचने हेतु श्रुतामृत का पान किया करता है तथा यही भावना रखता है कि संसार में व्याप्त अज्ञान तिमिर का विनाश होवे, प्राणीमात्र वीतराग धर्म की ओर अपने कदम रखे, भूतार्थ मार्ग को समझें संसारपंक से स्वपर रक्षा में संलग्न रहता है ज्ञानीजीवं
देखो, सत्यार्थ - प्रकाश के लिए आगम का ज्ञान अनिवार्य हैं आगम ज्ञान के अभाव में तत्त्वोपदेश नहीं करना चाहिए. कारण कि यदि कदाचित किसी जीव को विपरीत देशना प्रदान कर दी तो उसका अहित तो होगा ही, साथ में स्वयं का भी अहित होगां कारण कि स्वयं के द्वारा जिनदेव की आज्ञा के विपरीत कथन होने से स्वयं के सम्यक्त्व में दोष आता हैं 'रयणसार' ग्रंथ में लिखा है कि जो व्यक्ति क्षयोपशमिक मतिश्रुत ज्ञान के बल से आगम में स्वछंद बोलता है, वह मिथ्यादृष्टि हैं उसका वचन जिनेंद्रदेव के मार्ग में आरूढ़ व्यक्ति का वचन नहीं है
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मदिसुदणाण- बलेण दु सच्छंद बोल्लदे जिणुदिट्ठ
जो सो होदि कुदिट्ठी, ण होदि जिणमग्ग- लग्गरवो ं 3– र.सा.
परन्तु सम्यक्दृष्टि जीव जिनदेव एवं आचार्य परम्परा के विरुद्ध कभी भाषण नहीं करतां वह आगम आधार से वचनालाप करता हैं।
पुव्वं जिणेहि भणिदं, जहदिद्वंदं गणहरेहि वित्थरिदं पुव्वाइयरियक्कमजं तं बोल्लदि जो हु सद्दिट्ठीं 2 र.सा.
अर्थात् 'जैसा पूर्वकाल में जिनेंद्रों ने कहा, गणधरों ने जिस यथावस्थित वस्तुस्वरूप को विस्ताररूप से बताया और पूर्वाचार्यों की परम्परा से जो प्राप्त हुआ है, उसे ही जो कहता है, वह सम्यक्दृष्टि हैं सम्यक्दृष्टि जीव अपने प्रवचनों में जिनागम के बाहर कथन नहीं करतां नमोऽस्तु, शासन के पक्ष को दृढ़ करने की ही चर्चा करता हैं यहाँ-वहाँ की बातों में समय निकालना श्रेष्ठ वक्ता का लक्षण नहीं हैं वक्ता श्रेष्ठ वही है, जो सभा को देखकर मधुर गम्भीर वाणी में जिनवाणी को सहजभाव से जन-जन के अंतःकरण में प्रवेश करा दे तथा सदशास्त्रों के पढ़ने के लिए लोगों को वाचाल कर दें श्रोता ग्रंथ पढ़कर निर्ग्रथों के प्रति आस्थावान् हो जाए, वही सच्चा वक्ता हैं आचार्य भगवन् इस कारिका में यही बतला रहे हैं कि जगत में तीर्थ की प्रवृत्ति कौन कर सकता है ? जो सम्यक् रूप से जिन - प्रवचन को जानता है तथा स्याद्वाद / नय - विद्या का
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