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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 28 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो मनीषियो! मैं आज बताये देता हूँ, ध्यान रखना कि यदि अज्ञान से कोई पाप हो जाये तो सम्यज्ञान से छूट जाता है, पर यदि जान करके पाप कर रहा है तो वज्रलेप हो जाता हैं अब पूछ लेना अपनी आत्मा से कि हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह, छल, कपट, दम्भ ये पाप हैं कि नहीं? इनसे दुर्गति होती है कि नहीं ? अब आपको मालूम चल गया कि छल-कपट आदि करने से पाप का बंध होता है और जानते हुए भी पाप करोगे, तो भो ज्ञानी ! नियम से वज्रलेप ही होगां यहाँ 'ही' लगाना, भी नहीं लगानां इसलिए, यदि आपको अपनी आत्मा पर करुणा हो, तो आज से पाँचों पापों को छोड़ दों
भो चेतन! परिग्रह को तो आपने पुण्य मान लिया है, आगम को पढ़कर देखना 'बह्वारम्भ-परिग्रहत्वं नारकस्याऽऽयुष' त.सू. अरे! जितनी-जितनी हिंसा आज तक हुई है, चाहे वह महाभारत काल में हुई हो, चाहे रामायण काल में, वह परिग्रह के कारण ही हुई हैं इसलिए नारी भी परिग्रह हैं देखो, रावण स्त्री- परिग्रह के पीछे नष्ट हो गया, हिंसा हुई महाभारत किसके कारण हुआ? परिग्रह के पीछे, राज्य के पीछे उसमें भी हिंसा हुईं भो ज्ञानी! परिग्रह को मूल में इसलिए रख दिया जैसे "णमो लोए सव्व साहूणं' अर्थात् नमस्कार-मंत्र के अंत में णमो लोए सव्व' पद रखकर लोक के सम्पूर्ण अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधू को ले लिया, इसी प्रकार से पापों का भी शिरोमणि परिग्रह हैं
भो ज्ञानी! राजमार्ग यह है कि यदि आप गृहस्थ भी हो, तो कम से कम परिग्रह का परिमाण तो कर लों यह हाय-हाय तो समाप्त हो जायें करोड़ की मर्यादा कर लों हम यह नहीं कह रहे तुम कम परिग्रह का परिमाण करो, लेकिन कम से कम शांति से तो बैठो, अन्यथा तीन लोक की संपदा तो तुम्हें मिलनेवाली नहीं हैं जब आपको प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति पद मिलना ही नहीं है, तो भो ज्ञानी आत्माओ! यह पद भी परिग्रह में ही आते हैं जब इन पदों की सम्भावनायें ही नहीं हैं, तो उन पदों का विसर्जन कर दों ध्यान रखो, यदि आँख फूट जाये तो भी चिंता मत करना, परंतु श्रद्धा का नेत्र न फूटे और आगम न छूटें यदि श्रद्धा का नेत्र फूट गया और आगम छूट गया, तो भो ज्ञानी ! तुम दो चश्में और लगवा लेना, लेकिन वह काम में नहीं आयेंगें वह तो संसार को ही दिखायेंगे, जबकि श्रद्धा का नेत्र परमार्थ को दिखायेगां
भो चेतन! यदि आपका वश चल जाता तो आप बड़ी तरकीब से आयुकर्म को पकड़ लेते और कहीं बंद करके रख देतें यदि कहीं पैसा देकर आयु बढ़ाई जाती, तो सब लोग रूखा-सूखा दाना खाकर सो लेते, पर पैसा इकट्ठा जरूर कर लेतें वह तो अच्छा हुआ कि कुछ व्यवस्था ऐसी है जो तुम्हारे हाथ की नहीं हैं भो ज्ञानी आत्माओ! यदि अपना हित चाहते हो तो बस तत्त्व को समझो, तत्त्व-दृष्टि को समझों इस हेतु श्रद्धा के नेत्र और आगम के नेत्र को सुरक्षित रखनां
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