Book Title: Pravachansaroddhar Part 1
Author(s): Nemichandrasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 618
________________ मारोद्धारे। सटीके झपकश्रेणिः गाथा प्र.आ. इदानीं 'स्ववगसेढी' ति एकोननवतितमं द्वारमाह अणमिच्छमीससम्मं अट्ठ नसिधीवेयटक्कं च । "पुवेयं च 'स्ववेद कोहाईएवि संलजणे ॥३९४॥ [आव.नि.१२१] कोहो माणो माया लोहोऽणताणुबंधिणो 'चउरो । स्वविऊण स्ववड़ सहो मिच्छं मोसं च सम्मतं ॥१९५|| अप्पच्चस्वाणे चउरो पच्चरवाणे य सममवि स्ववेद । तयणु नपुगाइयोवे गदुर्ग मनिग सवा समं ॥३९६॥ हासरहअरइपु वेयसोयमयजुयदुगुंछ सत्त इमा । नह संजलणं कोहं माणं मायं च लोभं च ।६९७॥ नो किट्टीकयअस्संग्खलाहवंडाई स्वविय मोहस्वया । पावह लोयालोयप्पयासयं केवल नाणं ॥१९॥ नवरं इत्थी स्ववगा नपुसगं खविय थीवेयं । हासाइलगं खवि खवइ सवेयं नरो खवगो ॥६९९॥ 'अणमिच्छ' गाहा, इह अपकणिप्रतिपत्ता पुमान् वर्षाष्टकस्योपरि वर्तमानो बज्रर्षभनाराचसंहननी शुद्धध्यानापितमना अविरत-देशविरत प्रमत्ता-ऽप्रमत्तमयतानामन्यतमः, केवलं यद्यप्रमत्तसंयतः पूर्ववित्तहिं १ पुमवेय-ता.॥२ खबई-जे.॥ ३ मणिया-वा.॥

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