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अन्दर डबल 'क' का और शब्द ' के श्रादि में 'क' का प्रयोग होता है । जैसे :- उत्कण्ठा - उक्कण्ठा, मुक्त-मुक्क, वाक्यवक्क, चक्र - चक्क, तर्क - तक, उल्का - उक्का, विक्लव - विक्कव, पक्व पक्क, क्वचित् - कचि, क्वणति - कणति ।
(२) त्ख, ख्य, क्ष, त्क्ष, क्ष्य, ष्क, स्क, स्ख, : ख के बदले क्ख तथा ख होता है । जैसे:- उत्खण्डित - उक्खण्डिन, व्याख्यान - वक्खाण, क्षय -- खय, क्षण-खण, श्रक्षि- क्खि, उत्क्षिप्त - उक्खित्त, लक्ष्य - लक्ख, शुष्क—सुक्ख, श्रास्कन्दति - अक्खंदइ, स्कन्द - खंद, स्खलितखलिन, स्खलन - खल, स्खलति - खलइ, दुःख - दुक्ख । (३) ङ्ग, ग्ण, द्ग, ग्न, ग्म, ग्य, ग्र, र्ग, लग के बदले ग्ग तथा ग का प्रयोग होता है । जैसे :- खड्ग - खग्ग, रुग्ण - रुग्ग, अथवा लुग्ग, मुद्ग - मुग्ग, नग्न- नग्ग, युग्म- जुग्ग, योग्य - जुग्ग, अग्र - अग्ग, ग्रास-गास: ग्रसते-गसते, वर्ग-वग्ग, वल्गा - वग्गा ।
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(४) द्घ, घन, घ्र, र्घ, के स्थान में ग्घ तथा घ होता है । जैसे उद्घाटित - उग्वाडि, विघ्न - विग्ध, शीघ्रम् - सिग्धं, घाण घाण, अर्घ-अग्घ ।
(५) च्य, र्च, श्च, त्य के स्थान पर च्च तथा च होता है । जैसे :अच्युत - अच्चुत्र, च्युत-चुत्र, श्रर्चा - श्रच्चा, निश्चल -निच्चल, सत्य - सच्च, त्याग - चाय, त्यजति - चयइ |
(६) ई, छ, क्ष, त्क्ष, क्ष्म, त्स, थ्य, त्स्य, प्स, श्च के स्थान में च्छ तथा छ होता है । जैसे :- मूर्छा - मुच्छा, कृच्छ्र- किच्छ, क्षेत्र -छेत्त,
१. यहाँ ( इस विभाग में ) दिये गये सभी उदाहरणों में डबल क, क्ख, ग्ग, ग्ध, आदि अक्षरों के प्रयोग के विषय में जो कहा गया है, उनका उपयोग शब्द के अन्दर करना चाहिए और जो इकहरा क, ख, ग, आदि कहा है उसका उपयोग शब्द के आदि में करना चाहिए ।
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