Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 14
________________ हैं। चौथे स्थान में पापग्रहों से युक्त अष्टमेश है। मंगल और शनि पापग्रह हैं। डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार सप्तम भाव में राहु स्थित हो, इस भावपर पापग्रह की दृष्टि हो, सप्तमेश पापाक्रान्त हो, तो पत्नी का अभाव रहता है। ऐसे जातक का विवाह नहीं होता, इस योग से उसके संयमी होने की सूचना मिलती है। इसी के परिणामस्वरूप वे अविवाहित रहे तथा अपनी अल्प-आयु का बोध भी उन्हें संसार के बंधनों से विरत रखकर संयममार्ग की ओर आकर्षित कर रहा था। इसप्रकार इनकी कुमारदीक्षा हुई और ‘पंच बालयति' तीर्थंकरों में इनकी गणना हुई “वासुपूज्यस्तथा मल्लिनेमि: पार्योऽथ सन्मति:।। कुमारा: पंच निष्क्रान्ता: पृथिवीपतय: परे।। -(दशभक्ति, पृ० 247) “वासुपूज्य-मल्लि-नेमि-पार्श्व-वर्धमान-तीर्थकराणां कुमारदीक्षितानां यौवनराज्यस्थापनपर्यंत जन्माभिषेक-क्रियां कुर्यात् ।” –(प्रतिष्ठातिलक 2 अ०, पृ0 503) __समवायांगसूत्र, ठाणांगसूत्र, पउमचरिय तथा आवश्यकनियुक्तिकार द्वितीय भद्रबाहु की मान्यता है कि वर्द्धमान अविवाहित थे। उद्धरण के रूप में समवायांग सूत्र' की एक गाथा इसप्रकार है “तिहुयणपहाणसामि, कुमारकाले वि तविय तवयरणे। वसुपुज्ज-सुदं मल्लिं चरिमतियं सत्थुवे णिच्चं ।।" 'कुमार' शब्द का अर्थ विवाहित लेने पर पाँचो तीर्थंकरों को विवाहित मानना होगा, अत: यह संभव नहीं। -- (पं० दलसुखभाई मालवणिया) ' महान् दार्शनिक पाइथागोरस ब्रह्मचर्य की महिमा बताते हुये लिखते हैं... “जो व्यक्ति अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर सकता है, वह स्वतंत्र (स्वाधीन) नहीं हो सकता है। अपने आप पर शासन और अनुशासन की शक्ति-सामर्थ्य 'ब्रह्मचर्य' के बिना संभव नहीं है।" ____ यद्यपि युवराज-अवस्था में ही इनका चिन्तन और प्रशान्तमुद्रा विज्ञजनों को भी 'सन्मति' प्रदान करती थी “संजयस्यार्थ-संदेहे संजाते विजयस्य च, जन्मानन्तरमेवैनमभ्येत्यालोकमात्रत: । तत्सदेहे गते ताभ्यां चारणाभ्यां स्वभक्तित:, अस्त्वेष सन्मतिर्देवो भावीति समुदाहृतः ।।" –(उत्तरपुराण, 74/282-3, पृष्ठ 462) अर्थ :- पार्खापत्य 'संजय' और 'विजय' नाम के दो चारण-मुनियों को इस बात में भारी सन्देह उत्पन्न हो गया था कि मृत्यु के उपरान्त जीव पुनः किसी दूसरी पर्याय में जन्म लेता है या नहीं? वर्द्धमान के जन्म के कुछ समय बाद उन चारण मुनिराजों ने जब भावी तीर्थकर बालक वर्द्धमान को देखा, तो उसी क्षण उनका वह संदेह दूर हो गया। अतएव उन्होंने भक्ति से उनका नाम 'सन्मति' रखा। Jain 1 2ama प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Etndtalion Hinte reate or PersonaDUS

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