Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 36
________________ प्रभाव छोड़ा। यह एक ध्यान देने की बात है कि महात्मा बुद्ध ने केवलज्ञान (दिव्यज्योति) प्राप्ति से पूर्व कई विद्वानों के साथ अनेकों प्रकार के प्रयोग कर मध्यममार्ग अपनाया था तथा तत्कालीन प्रचलित अनेकों धार्मिक मान्यताओं एवं परम्पराओं का परित्याग भी किया था। उन्होंने तो भगवान् ऋषभदेव, नेमिनाथ एवं अपने निकटतम पूर्ववर्ती तीर्थंकर पार्श्वनाथ (जो उनसे केवल 200 वर्ष पूर्व हुए थे) द्वारा प्रचलित धर्म को ही अंगीकार किया और उसे ही तत्कालीन समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। ___ महात्मा बुद्ध के विचार अपने समकालीन मतों एवं विश्वासों से बहुत कम मेल खाते हैं; क्योंकि उनकी यह धारणा थी कि “मानवजाति के लिए मैंने कुछ नवीन खोज की है"; पर भगवान् महावीर के विचार अपनी समकालीन विचारधाराओं से बहुत मिलते-जुलते हैं, वे दूसरे के विचार समझने को सदैव उत्सुक रहते थे; क्योंकि वे उस धर्म का उपदेश साधारण रूप में परिवर्तित कर रहे थे, जो भगवान पार्श्वनाथ के समय से प्रचलित था। उदाहरणार्थ डॉ० याकोबी ने लिखा है- “महावीर और बुद्ध दोनों ने अपने मतों के प्रचार के लिए अपने-अपने वंशों का सहारा लिया। दूसरे प्रतिद्वंद्वियों पर उनका प्रचार निश्चय ही देश के मुख्य-मुख्य परिवारों पर निर्भर था। महात्मा बुद्ध की आयु 80 वर्ष की थी, जबकि भगवान् महावीर केवल 72 वर्ष ही जिये। महात्मा बुद्ध के मध्यमार्ग ने समाज को एक नवीनता दी और नये अनुयायियों में विशेष उत्साह पैदा किया, फलस्वरूप उनका प्रभाव बड़ी दूर-दूर तक विस्तार से फैला, पर भगवान् महावीर ने तो नवीन और प्राचीन दोनों को ही अपनाया था, इसलिए वे सहयोग की भावना से ओत-प्रोत रहे। उनके समय नये अनुयायियों का प्रश्न इतना ज्वलन्त न था, जितना कि महात्मा बुद्ध के सामने था। जैन और बौद्ध साधुओं के नियमों में बड़ी समानता थी, इसका प्रबल प्रमाण यह है कि कुछ समय के लिए महात्मा बुद्ध ने निग्रंथत्व (दिगम्बरत्व) धारण किया था, जो भगवान् पार्श्वनाथ के समय से चला आ रहा था। डॉ० याकोबी ने लिखा है कि जब बौद्धधर्म की स्थापना हुई, तब निगण्ठ (निग्रंथ) जो 'जैन' या 'अर्हत्' के नाम से प्रसिद्ध हैं, एक महत्त्वपूर्ण वर्ग के रूप में विद्यमान थे। पालि-साहित्य में भगवान् महावीर का 'निगण्ठ-नातपुत्त' के नाम से उल्लेख मिलता है। इसप्रकार महावीर और बुद्ध ने प्रारम्भ में एक ही श्रमण-संस्कृति के आदर्शों पर अपना जीवन प्रारम्भ किया, पर आगे चलकर वे भिन्न-भिन्न हो गये और इसी तरह उनके अनुयायी भी समय और स्थान भेद के कारण भिन्न-भिन्न हो गये। पर यह एक शोध का विषय है जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि दोनों धर्म भारत में पैदा हुए, पर जैनधर्म तो आज भी जीवितरूप से अपनी जन्मभूमि में विद्यमान है, पर बौद्धधर्म अपनी जन्मभूमि को छोड़ पूर्वी क्षितिज पर पल्लवित हो रहा है ऐसा क्यों? एक बड़ा विचारणीय प्रश्न है। अत: आज यह अत्यधिक आवश्यक है कि महात्मा बुद्ध और भगवान् महावीर की शिक्षाओं का जो अध्ययन हुआ, 00 34 प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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