Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 115
________________ त्रिशला-कुंवर की तत्त्वदृष्टि -डॉ० माया जैन वैशाली गणतंत्र का शासक चेटक था, जिसकी पुत्री प्रियकारिणी त्रिशला थी। वह अपनी सात बहनों में सबसे बड़ी बहिन थी। सुप्रभा, प्रभावती, मृगावती, चेलना, ज्येष्ठा और चन्दना भी सभी कलाओं में निपुण थी। उनके दस भाई भी थे जो धीर-वीर एवं गंभीर थे। जिन्होंने अपने पिता चेटक की राज्य-सत्ता को भलीभाँति संभाल रखा था। चेटक धर्मनिष्ठ श्रावक भी था तथा दानी और ज्ञानीजनों का समान करनेवाला भी था। वैशाली कन्या त्रिशला :- सुभ्रदा की लाडली बेटियों में त्रिशला प्रिय थी। सभी के स्नेह का कारण बनकर वह वैशाली की कन्याओं में जहाँ अपनी कलाओं से प्रसिद्ध थी, वहीं धर्म-जगत् के बीच में धर्मनिष्ठा का परिचय देने वाली होने से सबकी प्रियकारिणी भी थी। त्रिशला का परिणय :- ज्ञातृवंश, ज्ञातवंश, णायवंश आदि के नाम से प्रसिद्ध सिद्धार्थ का गौरव इसी से था। वज्जि-संघ में नौ अधिपति थे। उनका प्रमुख गणपति या राजप्रमुख गणपरिषद का संचालनकर्ता था। वज्जियों के अष्टकुल में भोगवंशीय, इक्ष्वाकुवंशीय, ज्ञातृवंशीय, कौरववंशीय, लिच्छवीवंशीय, उग्रवंशीय और विदेह-कुलों का वर्णन आगमों में विशेषरूप से प्राप्त होता है। वैशाली के लिच्छवी :-- गणराज्यों एवं गणशासन का प्रतिनिधित्व कोई राजपुरुष ही करता था। जितने गण थे, उतनी परिषदें थीं। उन परिषदों का प्रमुख लिच्छवी-राजा चेटक था, जिसकी पुत्री प्रियकारिणी का परिणय कुण्डग्राम के अधिपति के पुत्र सिद्धार्थ से हुआ। वे कुण्डग्राम के ज्ञातृवंशीय राजकुमारों के बीच अपना विशिष्ट स्थान बना चुके थे। इसलिये विदेह देश के कण्डपुरवासी सिद्धार्थ-कँवर को त्रिशला प्रदान की गई। परिणय के पश्चात् त्रिशला वैशाली-गणराज्य की तरह विदेह-कुण्ड के कुण्डग्राम में भी अपना स्थान बनाने में समर्थ हई। त्रिशला-कुँवर कुमार वर्धमान :- नाना संघ-गण एवं राज्यों के बीच गौरवशाली स्थान को पानेवाले सिद्धार्थ के नयनों की छवि ने रूप-लावण्य-युक्त प्रियकारिणी को राजमहिषी का स्थान दिया। दोनों के स्नेहसूत्र से लोकप्रिय जिस पुत्र का जन्म हुआ, प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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