Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

Previous | Next

Page 133
________________ समाचार दर्शन 'ब्राह्मी-पुरस्कार' एवं 'अहिंसा-पुरस्कार' समर्पित परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज की पावन प्रेरणा एवं मंगल-आशीर्वाद से त्रिलोक उच्चस्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान' के द्वारा प्रवर्तित भारतीय विद्याओं के क्षेत्र में उत्कृष्ट अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिये प्रवर्तित 'ब्राह्मी-पुरस्कार' (वर्ष 2001 ) एवं 'अहिंसा प्रसारक ट्रस्ट' मुम्बई द्वारा प्रवर्तित 'अहिंसा-पुरस्कार' (वर्ष 2001) दिनांक 10 जून 2001 रविवार को राजधानी के सुप्रतिष्ठित सीरीफोर्ट सभागार' में आयोजित भव्य-समारोह में समर्पित किये गये। परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में आयोजित इस समारोह में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी जी 'मुख्य अतिथि' के रूप में पधारी। तथा राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी ने समारोह की अध्यक्षता की। ब्राह्मी-पुरस्कार' (वर्ष 2001) ब्राह्मी-लिपि के विश्वविख्यात विशेषज्ञ विद्वान् प्रो० किरण कुमार थपल्याल, लखनऊ को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिये समर्पित किया गया। राज्यसभा के महासचिव श्री रमेशचन्द्र जी त्रिपाठी की अध्यक्षता में गठित एक उच्चस्तरीय चयन-समिति ने उनका नाम सर्वसम्मति से चयनित किया था। तथा सुप्रसिद्ध गांधीवादी समाजसेविका और अहिंसा के प्रचार-प्रसार में समर्पित सुश्री निर्मलाताई देशपांडे को वर्ष 2001 का ‘अहिंसा-पुरस्कार' समर्पित किया गया। समारोह में मंगल-आशीवर्चन प्रदान करते हुये पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नीति रही है कि “स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते” अर्थात् राजा का आदर तो मात्र अपने देश में होता है, किन्तु विद्वान् सारे भूमण्डल में पूजा जाता है। उनके लिये देश और काल की सीमायें लागू नहीं पड़ती हैं। ये विचार पूज्य आचार्यश्री ने दोनों पुरस्कारों के समर्पण-समारोह में व्यक्त किये। उन्होंने श्रीमती सोनिया गाँधी को नेहरूगाँधी-परिवार की परम्पराओं के अनुरूप गतिशील रहने की प्रेरणा दी और उन्हें मंगल-आशीर्वाद भी दिया। सम्मानित मनीषियों को भी पूज्य आचार्यश्री ने अपना मंगल-आशीर्वाद प्रदान किया। समारोह की मुख्य-अतिथि श्रीमती सोनिया गाँधी जी ने भगवान महावीर और जैनधर्म के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करते हुए कहा कि इनके सिद्धांत प्राणीमात्र के लिये हितकारी हैं। उन्होंने राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अन्तर की समीक्षा करते हुये भावना प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148