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समय भी चन्दना का ध्यान रखने के लिए कहकर गये थे, परन्तु सेठानी सुभद्रा को तो मानों सौतिया डाह ही निकालने का सुन्दर अवसर मिल गया। उसने कैंची से चन्दना के केश काट दिये और उसे मिट्टी के सकोरे में कांजीमिश्रित कोदों का भात खाने के लिए देना प्रारम्भ कर दिया। वह चन्दना का सदैव लोहे की साँकल से भी बाँधकर रखने लगी।
चन्दना तो चन्दना ही थी। इतने अपार कष्टों को भी वह अपने अशुभ कर्मों का अनिवार्य फल मानकर शान्ति एवं धैर्य से सहन किया करती थी।
एक दिन इसी कौशाम्बी नगरी में तीर्थकर वर्धमान महावीर – जो उस समय मुनि-अवस्था में थे - आहार के लिए पधारे। जब वे सेठ वृषभदत्त के घर के सामने आये, तो आदर्श श्राविका चन्दना का रोम-रोम हर्ष से भर उठा। वह सब-कुछ भूल गई और भक्ति-विभोर होकर आहार-हेतु वर्धमान महावीर के पड़गाहन के लिए आगे बढ़ गई।
देखो भक्ति की शक्ति ! चन्दना का मुखमण्डल नूतन कमल-पुष्प के समान खिल उठा, लोहे की बेड़ियाँ स्वयमेव टूटकर दूर जा पड़ी, केशविहीन सिर पर भ्रमर-सदृश काले केश लहराने लगे, मिट्टी का सकोरा स्वर्णपात्र बन गया और कोदों का भात सुरभित शालि-चावलों का भात बन गया। चन्दना के जीर्ण-शीर्ण वस्त्र भी बहुमूल्य वस्त्र बन गये। ___ आदर्श श्राविका महासती चन्दना ने नवधाभक्तिपूर्वक वर्धमान महावीर को पड़गाह लिया और विधिपूर्वक निरन्तराय आहार दे दिया। चारों ओर जय-जयकार होने लगी। देवों ने भी चन्दना के इस महान् पुण्यदान की सराहना की। आकाश में देवदुन्दुभि बजने लगी। शीतल मन्द सुगन्धित वायु प्रवाहित हुई। सुगन्धित-जल की वृष्टि भी हुई।
चन्दना अब न हतभाग्य थी और न ही दासी। उसके महान् भाग्य की गाथा आज सम्पूर्ण कौशाम्बी में घर-घर में गाई जा रही थी। देखो, वर्धमान महावीर ने राजमहलों के राजसी आहार को छोड़कर इस पवित्रात्मा श्राविका के हाथों आहार ग्रहण किया। धन्य है चन्दना ! धन्य है चन्दना !! चन्दना की वन्दना ! चन्दना की वन्दना।
चन्दना की यह गौरव-गाथा कौशाम्बी की पटरानी मृगावती के कानों तक पहुँच गई। वह अत्यन्त उत्सुकतापूर्वक उस महाभाग्यवती महिला से मिलने सेठ वृषभदत्त के घर आई। मिलने पर वह आश्चर्य और हर्ष से भर उठी, क्योंकि उसने देखा कि अरे ! यह तो उसकी छोटी बहिन चन्दनबाला है। दोनों बहिनें गले लगकर मिली और बड़ी देर तक अपने दुःख-सुख के आँसू बहाती रहीं। अन्त में मृगावती उसे अपने साथ ले गई। उसे माता-पिता (महारानी सुभद्रा और महाराजा चेटक) के पास भी भेज दिया, परन्तु उसका मन भोगों से विरक्त हो चुका था; अत: उसने थोड़े दिन बाद ही तीर्थकर वर्धमान महावीर के समवशरण में आर्यिका दीक्षा ले ली।
चन्दना का जीवन अब चन्दन की भाँति सुरभित हो गया।
00 62 प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक
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