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अपने
भारत के इतिहास में लिच्छिवियों की यशस्वी परम्परा रही है। कई सम्राट् आपको लिच्छिवी-कुल का कहने में गौरव अनुभव करते थे
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"समुद्रगुप्त प्रयाग की प्रशस्ति तथा अन्य सभी गुप्त - लेखों में 'लिच्छवी - दौहित्र' कहा गया है । वह लिच्छवी - राजकुमारी कुमारदेवी का पुत्र था, इसलिए “लिच्छवी - दौहित्रस्य महादेव्यां कुमारदेव्यामुत्पन्न” उल्लिखित है। इसकी पुष्टि चन्द्रगुप्त - प्रथम के मुद्रा-लेख से की जाती है। राजा द्वारा प्रचलित स्वर्ण - सिक्के के अधोभाग पर 'कुमारदेवी श्री' तथा 'चन्द्रगुप्त' का नाम खुदा है तथा पृष्ठ-भाग पर 'लिच्छवय: ' उत्कीर्ण है। इससे तथ्य का पता लग जाता है कि चन्द्रगुप्त का विवाह लिच्छवी - वंशजा कुमारदेवी से हुआ था । समुद्रगुप्त को इसी कारण 'लिच्छवी - दौहित्र' कहा गया है । इसप्रकार के अन्य दृष्टान्त भी दिये जा सकते हैं। गुप्तवंश की एक मुहर पर प्रथम कुमारगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त नाम मिलता है और दूसरे अभिलेखों में स्कन्दगुप्त प्रथम को कुमारगुप्त का पुत्र या उत्तराधिकारी कहा गया है।" – (डॉ० वासुदेव उपाध्याय, प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन', पृ० 37 ) “श्रीकुण्डनाख्ये नगरे विशाले कृतावतारो नृसुरैश्च पूज्यः । कामेभसिंहः शुभसिंहचिह्न: वंद्योस्ति वीरो जिनवर्द्धमानः । । ”
- (वृहद् गणधरवलय विधान ) अर्थ :- श्रीकुण्डन नामक विशाल नगर में देवताओं एवं मनुष्यों के द्वारा पूज्य सिंह के समान पराक्रमी, सिंह के शुभचिह्न वाले वंदनीय वर्द्धमान महावीर जिनेन्द्र ने अवतार (जन्म) लिया था ।
प्राचीन वृहत्तर भारतवर्ष के 'मध्यदेश' का मण्डन 'वैशाली नगर' को माना गया है“ अत्थि इह भरहवासे मज्झिमदेसस्स मण्डणं परमं । सिरिकुण्डगाम - णयरं वसुमइरमणी तिलयभूयं । । "
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- ( नेमिचन्द्र सूरिकृत महावीरचरियं, पत्र 26 ) अर्थ भारतवर्ष के मध्य देश में 'कुण्डग्राम' नाम का नगर है, जो कि परमअलंकार स्वरूप है, तथा पृथ्वी - रूपी रमणी के तिलक के समान सौभाग्य का प्रतीक है। बिहार प्रांत में गंगा के उत्तर का प्रदेश 'बृजि' कहलाता था, जहाँ विदेह लिच्छिवियों
का राज्य था ।
चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय भी वैशाली में बहुत से निर्ग्रन्थ ( जैन साधु) रहते थे । पालयुग में वहाँ तीर्थंकरों की मूर्तियाँ भी बनती थीं।
इसप्रकार वैशाली नगरी न केवल अतिप्राचीन नगरी है, अपितु तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर की जन्मस्थली भी मानी गयी है। इसके महत्त्व को सभी लोगों ने मुक्तकंठ से स्वीकार किया है। 1
प्राकृतविद्या जनवरी-जून’2001 (संयुक्तांक) महावीर - चन्दना-विशेषांक
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