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दिनोंदिन सिकुड़ता/सिमटता जा रहा है; तब आत्मा में रागादिभावों की उत्पत्ति हिंसा है
और आत्मा में राग-द्वेष-मोह के परिणाम उत्पन्न ही नहीं होना ‘अहिंसा' है। ऐसी सूक्ष्म निश्चय अहिंसा की चर्चा की प्रासंगिकता चिन्तनीय विषय बन गया है। जैनदर्शन में प्रतिपादित अहिंसा की अतिव्यापक उदात्त भावना को हम अपने से शुरू करके विश्वभर में प्राणीमात्र में आध्यात्मिक संदेश के रूप में प्रसारित करें - यह समय की माँग है।
क्योंकि इसी अहिंसा के बल पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने इस देश को स्वतन्त्र कराया था, तथा इस तथ्य की मुखर स्वीकृति भारतीय गणतन्त्र के संविधान की मूल प्रति पर की गयी है। उसमें सबसे ऊपर बंगाल के एक चित्रकार द्वारा निर्मित निर्ग्रन्थ मुद्रा का भगवान् महावीर का एक मनोरम चित्र है और उसके नीचे लिखा है
Vardhamana Mahavir, the 24th Tirthankara in a meditative posture, another illustration from the calligraphed edition of the Constitution of India. Jainism is another stream of spiritual renaissance which seeks to refine and sublimate men's conduct and emphasises Ahimsa, nonviolence, as the means to achieve it. This became a potent weapon in the hands of Mahatma Gandhi in his political struggle against the British Empire.
हिन्दी अनुवाद :-- चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर ध्यान की मुद्रा में (भारतीय संविधान के उत्कीर्णित लेख-प्रति का निदर्शन)। जैनमत आध्यात्मिक पुनर्जागरण की एक विशिष्ट धारा है, जो कि मनुष्य के आचार-विचार को उदात्त बनाने के साथ-साथ इसकी प्राप्ति के लिये अहिंसा पर बल देता है। अहिंसा महात्मा गाँधी के हाथों में ब्रिटिश साम्राज्य से राजनैतिक संघर्ष करने में सशक्त अस्त्र बनी।
वर्तमान की आतंकवाद, नक्सलवाद जैसी उत्तरोत्तर बढ़ती हुई हिंसक प्रवृत्तियों के विषय वातावरण में महावीर की अहिंसा और अधिक प्रासंगिक है। आवश्यक है इसके नैष्ठिक प्रचार-प्रसार की और उसके लिए महात्मा गाँधी जैसी समर्पित मानसिकता वाले व्यक्तियों की। यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं इसे दृढ़ता से अपनाने को तत्पर हो जाये, तो भारतवर्ष को ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व को हिंसा और आतंक से मुक्ति मिल सकती है।
महावीर के प्रति विश्रुत विद्वानों के विचार
महावीर के वचन मानवीय-आचरण की उज्ज्वलतम प्रस्तुति है। अहिंसा का महान् सिद्धांत, जिसे पश्चिम-जगत् में ला ऑफ नान-वायलेंस' के नाम से जाना जाता है, सर्वाधिक मूलभूत सिद्धांत है, जिसके द्वारा मानवता के कल्याण के लिये आदर्श संसार का निर्माण किया जा सकता है। -डॉ० एल्फ्रेड डब्ल्यू पार्कर (इंग्लैण्ड) **
Jain Dialomromatप्राकतविद्या-जनवरी-जन 2015संग्रस्तांको महावीर-चन्दना-विशेषांकy.org