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शाश्वत सुख-शान्ति के राजा बनकर जो हो गये महान् । वे तीर्थंकर महावीर प्रभु मम हिय आवें नयनद्वार । ।
महामोह- आतंक - शमन को जो हैं आकस्मिक उपचार । निरापेक्ष-बन्धु हैं जग में जिनकी महिमा मंगलकार ।। भवभय से डरते संतों को शरण तथा वर गुण-भंडार । वे तीर्थंकर महावीर प्रभु मम हिय आवें नयनद्वार ।। 'महावीराष्टक स्तोत्र को, 'भाग' भक्ति से कीन । जो पढ़ ले अथवा सुने, परमगति वह लीन । । हिन्दी अनुवाद -
डॉ० वीरसागर जैन
वैशाली महानगर
ओ भारत की भूमि बन्दिनी ! ओ जंजीरों वाली ! तेरी ही क्या कुक्षि फाड़कर जन्मी थी वैशाली ? वैशाली ! इतिहास - पृष्ठ पर अंकन अंगारों का, वैशाली ! अतीत-गहर में गुंजन तलवारों का, वैशाली ! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता ! जिसे ढूँढ़ता देश आज उस प्रजातन्त्र की माता । रुको, एक क्षण पथिक ! यहाँ मिट्टी को शीश नवाओ, राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ ।। डूबा है दिनमान इसी खंडहर में डूबी राका, छिपी हुई है यहीं कहीं धूलों में राजपताका । ढूँढ़ो उसे, जगाओ उनको जिनकी ध्वजा गिरी है, जिनके सो जाने से सिर पर काली घटा घिरी है । कहो, जगाती है उनको बन्दिनी बेड़ियों वाली, नहीं उठे वे, तो न बसेगी किसी तरह वैशाली । । फिर आते जागरण गीत टकरा अतीत-गहर से, उठती है आवाज एक वैशाली के खंडहर से । " करना हो साकार स्वप्न को, तो बलिदान चढ़ाओ, ज्योति चाहते हो, तो पहले अपनी शिखा जलाओ । जिस दिन एक ज्वलन्त पुरुष तुम में से बढ़ आयेगा, एक-एक कण इस खंडहर का जीवित हो जायेगा । किसी जागरण की प्रत्याशा में हम पड़े हुए हैं,
लिच्छवी नहीं मरे, जीवित मानव ही मरे हुए हैं । । "
- ( रामधारी सिंह 'दिनकर' साभार उद्धृत Homage to Taisali, पृ० 299) **
Jain Eon102nattप्राकृतविद्या जनवरी- जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर चन्दना-विशेषांकy.org