Book Title: Prakrit Vidya 01 Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain Publisher: Kundkund Bharti TrustPage 88
________________ 'श्री वर्द्धमान पुराण' में वर्णित चन्दना - चरित — कवि श्री नवलशाह अनु. : डॉ. सुदीप जैन दिगम्बर जैन आम्नाय की 'गोलापूर्व जाति' के 'बड़चंदेरिया वंश' एवं 'प्रजापति गोत्र' में उत्पन्न कविवर श्री नवल शाह बुन्देलखण्ड के गौरवशाली कवि थे। आपके पिता का नाम देवाराय तथा माता का नाम प्राणमती था । सोलह अधिकारों में विभक्त इस ग्रंथ की रचना विक्रम संवत् 1825 में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, बुधवार के दिन सम्पन्न हुई थी। कविवर नवल शाह के अनुसार इस ग्रंथ का आधार भट्टारक सकलकीर्ति द्वारा विरचित संस्कृतभाषा निबद्ध 'वर्द्धमानचरित' नामक ग्रंथ है। इसी के आधार पर बुन्देलखंडी भाषा में इस काव्यग्रंथ की रचना की गयी है । -सम्पादक वनवासा विहरत भगवान, कथा और अब सुनहु सुजान । सिद्ध देश विशाल पुर सार, चेटक नाम नृपति गुण भार ।। तिनके सात सुता ऊपनी, प्रथमहि त्रिशला मात जिन तनी । दूजी ज्येष्ठा रुद्रहि माय, तृतीय चेलना श्रेणिक लाय ।। चौथी मशक पूर्व जननीय, पंचमि सुता चन्द्रमा प्रीय । रूपवंत रति तैं अधिकार, शील शिरोमणि गुण अधिकार ।। सो सब जो मैं वर्णन करों, होय अवार पार नहिं धरौ । एक समय वन क्रीड़ा गई, कामातुर खगपति हर लई ।। ता पीछे चिंत्यौ सब सोइ, निज त्रिय की भय कंपति होइ । ताको छोड़ महा उद्यान, खगपति गयौ आपने थान ।। वन में सो सुन्दरि एकली, पूरब करम भजै मन रली । मन में पंच परम गुरु आन, धरम ध्यान निहचै परवान ।। इह अवसर इक वनचर आय, अवलोकी सुंदरि को जाय । रूपवंत लक्षण संजुत्त, ले आयो सो ताहि तुरंत ।। कौशाम्बी पुर नगर महान, वृषभसेन तहँ सेठ सुजान । तिहि को आनि दई नर ताहि, अति प्रमोद कर लीनी वाहि । । 086 Jain Education International प्राकतविद्या + जनवरी - जन' 2001 (संयक्तांक) महावीर चन्दना - विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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