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जो रुद्र की माँ थी। तीसरी पुत्री चेलना का विवाह राजा श्रेणिक के साथ हुआ था ।
चौथी पुत्री मशक (अपरनाम प्रभावती थी, जिनका विवाह सिंधु - सौवीर देश के राज - परिवार में हुआ था ) । इनमें सबसे छोटी पुत्री का नाम चन्दना था, जो माता-पिता की अत्यंत लाडली थी; तथा अपनी रूपराशि से रति (कामदेव की पत्नी) को भी विजित करती थी, शील की शिरोमणि थी और गुणों से सम्पन्न थी ।
इसके विषय में जो कुछ भी मैं वर्णन करनेवाला हूँ, वह वर्ण्य विषय अपार है, और मैं उसका पार नहीं पा सकता हूँ (फिर भी विशेष भक्तिवश मैं उस महासती चन्दना का चरित्र-वर्णन करने जा रहा हूँ) । एक बार वह चन्दना वनक्रीड़ा के लिये गई, वहाँ पर वह एक कामातुर यक्ष के द्वारा हरण कर ली गई ।
इस घटना के बाद उस यक्ष ने चिंता की और वह अपनी पत्नी के भय से कम्पायमान हो उठा। तदुपरान्त वह यक्ष चन्दना को महाभयंकर वन में छोड़ करके अपने निवास स्थान चला गया।
उस भयंकर जंगल में वह सुन्दरी चन्दना अकेली अपने पूर्वकर्मों को स्मरण करती हुई दु:खी हो रही थी । ( इस विषम स्थिति में भी ) वह मन में पंच परमेष्ठी का स्मरण करते हुये निश्चय धर्म - ध्यान को प्राप्त करने की चेष्टा करने लगी ।
इसी बीच एक वनवासी भील वहाँ आया। वह उस बियावान जंगल में उस अकेली रूपवती, सुलक्षणा सुन्दरी को देखकर उसको बलपूर्वक अपने साथ अपने घर ले गया। ( वहाँ पर उस भील की पत्नी के द्वारा चन्दना के शील की रक्षा हुई, तब उस भील ने अपने कबीले के सरदार को चन्दना भेंट कर दी । कबीले के सरदार की कामवासना से वनदेवता के द्वारा चन्दना की रक्षा की गई, तब उस सरदार ने प्रतिशोध की भावना से भरकर उसे कौशाम्बी नगरी के दासी - पण्य में ले जाकर बेच दिया ) ।
उस महान् कौशाम्बी नगरी में वृषभसेन नामक सज्जन श्रेष्ठि रहते थे । संयोगवश वह चन्दना उस दासी-पण्य के प्रमुख के द्वारा इन्हीं वृषभसेन सेठ को दी गयी, और श्रेष्ठि वृषभसेन ने भी (अपनी पुत्री के समान जानकर ) अत्यंत प्रमोदपूर्वक उसे स्वीकार किया
उन श्रेष्ठि वृषभसेन की धर्मपत्नी का नाम सुभद्रा था, अत: अत्यंत प्रीतिपूर्वक श्रेष्ठी ने चन्दना को पत्नी सुभद्रा के हाथों में सौंप दिया । चन्दना को रूपवती और नवयौवना जानकर मन में अपनी सौत की आशंका करते हुये सेठानी सुभद्रा शंकाग्रस्त हो गई ।
(श्रेष्ठि वृषभसेन के व्यापार - निमित्त प्रवास पर जाने पर ) सेठानी सुभद्रा ने चन्दना को विरूप बनाने के अनेक प्रयत्न किये, और अनेकप्रकार के कष्ट दिये । वह चन्दना को ईर्ष्याभाव से ग्रस्त होकर स्वादरहित पुराने कोदों के बीज खाने को देती थी।
मट्ठे के सहित मिट्टी के बर्तन में उस दुर्बुद्धिनी सेठानी के द्वारा ऐसा भोजन चन्दना को दिया जाता था कि उसे देखकर चन्दना खाती नहीं थी और अपने दुर्भाग्य पर रोती थी,
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प्राकृतविद्या जनवरी-उ
- जून 2001 (संयुक्तांक )
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महावीर चन्दना-विशेषांक www.jainelibrary.org