Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 80
________________ 'पुष्पोत्तर विमान' से अवतरित हुए थे।' उनका जन्म भगवान् पार्श्वनाथ की उत्पत्ति के पश्चात 278 वर्ष व्यतीत हो जाने पर हुआ ।" महावीर का जन्म वैशाली - -कुण्डग्राम में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला से चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को 'उत्तरफाल्गुनी' नक्षत्र में उनका वंश नाथ-वंश था।' उनकी आयु 72 वर्ष प्रमाण थी। उनका कुमारकाल 30 वर्ष 6 और शरीर का प्रमाण सात हाथ था । 11 12 13 महावीर स्वर्ण- समान वर्ण के थे । उनका चिह्न सिंह था । जाति - स्मरण के कारण उन्होंने कुमारावस्था में कुण्डलपुर में अकेले ही 'जिनेश्वरी दीक्षा' ली।” उन्हें बारह वर्ष बाद केवलज्ञान की प्राप्ति हुई ।" यह काल 'छद्मस्थ काल' कहलाता है । 14 15 16 महावीर को ऋकूला नदी के किनारे वैशाख शुक्ल दसमी अपराह्न में हस्त नक्षत्र में केवलज्ञान हुआ। इसके साथ ही सौधर्मादिक इन्द्रों के आसन कम्पायमान हुए। केवलज्ञान की उत्पत्ति पर इन्द्र, अहमिन्द्र एवं चारों जाति के देवों ने सात कदम आगे चलकर महावीर जिनेन्द्र देव को प्रणाम किया । भगवान् पार्श्वनाथ के 289 वर्ष, 8 माह बाद महावीर को केवलज्ञान हुआ । 17 18 19 20 महावीर को केवलज्ञान होने पर सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने विक्रिया ऋद्धि से समवसरण रूपी धर्मसभा की अद्भुत रचना की। उनके समवसरण की रक्षा करने वाले गुह्य यक्ष और सिद्धायनी यक्षिणी थी। महावीर का केवली - काल तीस वर्ष का था अर्थात् तीस वर्ष तक उन्होंने धर्मोपदेश दिया ।" महावीर के इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह गणधर I ये सभी ब्राह्मण-मूल के थे 21 22 I 23 महावीर के धर्मतीर्थ में 300 पूर्वधर, 1100 शिक्षक, 1300 अवधिज्ञानी, 700 केवली, 900 विक्रिया ऋद्धिधारी, 500 विपुलमति एवं 400 वादी थे। उनके धर्मतीर्थ में 36000 आर्यिकायें थी,” उनकी प्रमुखा चन्दना थी । " महावीर के अनुयायी श्रावक-श्राविकाओं की संख्या क्रमश: एक लाख और तीन लाख थी । " 24 25 26 27 चतुर्थ काल में तीन वर्ष आठ माह और एक पक्ष शेष रहने पर महावीर कार्तिककृष्ण अमावस्या के प्रत्यूष काल में स्वाति नक्षत्र में 'कायोत्सर्ग आसन' में पावापुरी से अकेले ही सिद्ध हुए।" महावीर के बाद तीन अननुबद्ध केवली हुए । उनकी मुक्ति के पश्चात् 6 वर्ष में 4400 मुनि - शिष्यों ने मुक्ति प्राप्त की । आठ सौ मुनि सौधर्म स्वर्ग से ऊर्ध्व ग्रैवेयक तक गये। आठ हजार आठ सौ मुनि अनुत्तर विमानों में गये । भगवान् पार्श्वनाथ के 250 वर्ष व्यतीत होने पर महावीर मोक्ष गये।" महावीर का तीर्थकाल 21042 वर्ष प्रमाण 28 30 31 32 है । भगवान् महावीर के निर्वाण - महोत्सव के उपलक्ष में प्रतिवर्ष दीपावली - पर्व उल्लासपूर्वक मनाया जाता है । इसप्रकार पूर्व पर्याय में सिंह की अवस्था में आत्मबोध करनेवाला महावीर का जीव 10वीं पर्याय में अत्मोन्नति / शुद्धता में वृद्धि करता हुआ पशु से परमात्मा हो गया। प्राकतविद्या जनवरी-जन' 2001 (संयक्तांक) For Private & Personal Use Only 00 78 Jain Education International महावीर-चन्दना-विशेषांक www.jainelibrary.org

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