Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 73
________________ से पाप नहीं बंधता है और तप करने से सारे पुराने पाप दूर हो जाते हैं। इसप्रकार नये पापों के न होने से पापकर्मों का क्षय होता है, कर्मों का क्षय होने से दुःख दूर होते हैं, दुःखों के नाश से वेदना नष्ट होती है और वेदना के नष्ट होने से सभी (दैहिक, दैविक, भौतिक आदि) दु:ख दूर हो जाते हैं।” (तब बुद्ध कहते हैं) --- "यह बात मुझे अच्छी लगी है और यह मेरे मन को भी ठीक प्रतीत होती है।" – (मज्झिमनिकाय, पृ० 192-193) बौद्धग्रंथ 'मज्झिमनिकाय' के ये वाक्य इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि महात्मा बुद्ध भगवान् महावीर के उपदेश को ठीक समझते थे और भगवान् महावीर की सर्वज्ञता का भी उन्हें ज्ञान था। दीघनिकाय' (प्रथम भाग, पृष्ठ 48) में महात्मा बुद्ध के ये वचन इस तथ्य को और पुष्ट करते हैं.— “निगंठो नातपुत्तो संघी चेव गणी चेव गणाचार्यो च ज्ञातो यसस्सी तित्थकरो साधुसम्मतो बहुजनस्स रत्तस्सू चिरपब्वजितो अद्धगतो वयो अनुप्पत्ता।" अर्थ :- निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र (भगवान् महावीर) संघ (चतुर्विध संघ) के नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शनविशेष के प्रभावक हैं, विशेषत: विख्यात हैं, तीर्थंकर हैं. बहत मनुष्यों द्वारा पूजित हैं, अनुभवी हैं। वे बहुत समय से साधुचर्या करनेवाले (चिरप्रव्रजित) हैं और (मुझसे) अधिक उम्रवाले हैं। महात्मा बुद्ध और भगवान् महावीर के जीवन से सम्पृक्त रहे इस ऐतिहासिक राजगृह नगर का संक्षिप्त विवरण यहाँ प्रस्तुत हैरजवाड़ों का निवास रहा 'राजगृह' तीर्थस्थल जरासंध के प्राचीन नगर गिरिव्रज को बारह ईसापूर्व बारहवीं सदी के आसपास राजगृह नामक जिस नगर को बसाया था, वह एक सुन्दर एवं सुरम्य तीर्थस्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यह नगर तीन मील के घेरे में बसाया गया था। राजगीर का वास्तविक नाम राजगृह' है। 'राजगृह' का अर्थ होता है, वह स्थान जहाँ राजा-महाराजा निवास करते हैं। पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि जब कभी मलमास का महीना होता है, इस माह में देवतागण राजगृह को ही अपना निवास बनाते हैं। __ पौराणिक आख्यानों के अनुसार वसु ब्रह्मा के पुत्र थे, जिन्होंने वसुमती नामक नगर बसाया था। पुराणों में इसका नाम 'वृहद्खंडपुर' भी आया है। राजा 'बृहद्रथ' प्रसिद्ध राजा जरासंध के पूर्वज थे। राजगीर का एक और नाम 'कुशाग्रपुर' भी है। बौद्ध एवं जैन-ग्रंथों में यह चर्चा आयी है कि इस नगर के चारों तरफ सुगंधित कुश अर्थात् 'खस' का विशाल वन था। यह धार्मिक एवं रमणीक स्थान पटना से 102 कि०मी० दक्षिण-पूर्व कोने में नालंदा जिले में है। बख्तियारपुर' रेलवे स्टेशन से 54 कि०मी० तथा 'बिहार शरीफ' से 24 कि०मी० पर है। यहाँ जाने के लिये पक्की सड़कें और रेलमार्ग सुलभ है। यहाँ की प्राकृतिक शोभा निराली है। तरह-तरह के वृक्ष, झरने, पहाड़ियाँ, स्वदेशी तथा प्राकृतविद्या जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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