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भेंट कर दूं, तो मुझे बहुत सारा पुरस्कार प्राप्त होगा।” और वह इसे अपने सरदार को भेंट में देने के लिए ले गया। ___भील सरदार ने ऐसी सर्वांगसुन्दरी कन्या कभी न देखी थी। वह इसे पाकर अपने मन में फूला नहीं समा रहा था और नानाप्रकार की कल्पनाओं में तैरता जा रहा था। उसने अनेकानेक उपायों से चन्दना के मन को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता, पर चन्दना तो पंचपरमेष्ठी के स्मरणपूर्वक अपने शीलधर्म पर अत्यन्त अडिग थी। वह जानती थी कि शरीर तो नाशवान ही है और एक दिन नष्ट होगा ही, पर शीलधर्म की प्राप्ति महादुर्लभ है। अत: वह बाह्य कष्टों से चिन्तित नहीं थी, अपितु शीलधर्म की रक्षा-सुरक्षा में ही सतत संलग्न थी। परिणामस्वरूप भीलराज भी सभी उपाय करके हार गया और उसने चन्दना को दासों के एक व्यापारी को बेच दिया। ___वह व्यापारी दासों के झुण्ड के साथ चन्दना को कौशाम्बी के बाजार में बेचने के लिए ले गया। उसे आशा थी कि इस अतीव सुकुमारी नवयुवती का बाजार में बहुत अधिक मूल्य मिलेगा। महासती धर्मात्मा चन्दना इन सभी कष्टों को अपना पूर्वकृत अशुभकर्म समझकर धैर्यपूर्वक सहन कर रही थी। उसके हृदय में निरन्तर पंचपरमेष्ठी का स्मरण बना रहता था। ___ संयोग की बात, जिस समय चन्दना कौशाम्बी के बाजार में बिकने के लिये उपस्थित थी, उसी समय उधर से धर्मानुरागी सेठ श्री वृषभदत्त गुजरे। वे जिनालय से जिनेन्द्रदेव की पूजा करके लौट रहे थे। उनकी दृष्टि जैसे ही चन्दना पर पड़ी, वे सोचने लगे “अवश्य ही यह कन्या किसी सम्भ्रान्त कुल की है, पर दुर्दैव से इन नरपिशाचों के हाथों में पड़ गई है।" और वे व्यापारी को यथेच्छ धन देकर उसे अपने साथ ले आये। उन्होंने उसे अपनी धर्मपुत्री मान लिया।
घर पहुँचकर सेठ वृषभदत्त ने अपनी पत्नी सुभद्रा से कहा—“हे प्रिये ! दुर्भाग्यवश हमारे कोई सन्तान नहीं थी, परन्तु आज हमारे भाग्योदय से यह सुलक्षणा कन्या हमको प्राप्त हो गई है। इसे अपनी पुत्री ही समझो और इसे किसी प्रकार का कष्ट न हो - इसका पूरा ध्यान रखो।”
सेठ वृषभदत्त चन्दना से पुत्रीवत् व्यवहार करते थे, परन्तु सेठानी सुभद्रा उनके इस व्यवहार को कपट-व्यवहार समझती थी। वह सोचती थी कि सेठजी इस युवती को अपनी पत्नी बनाने के लिए लाये हैं। इसके रहते मेरी स्थिति दयनीय हो जाएगी और मेरा पद, मान, अधिकार आदि सब कुछ इसको मिल जाएगा। मेरे साथ दासीवत् व्यवहार होने लगेगा, इत्यादि। अत: वह ईर्ष्या के कारण चन्दना से दिन-रात जलने लगी और उसको दु:खी करने की चेष्टा करने लगी।
एक बार सेठ वृषभदत्त अपने किसी व्यापारिक कार्यवश परदेश गये। यद्यपि वे जाते
प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) +महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 61 For Private & Personal Use Only
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