Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 35
________________ 'नाथ' क्षत्रिय लोगों द्वारा अधिकृत एक उपजाऊ खेत भी एक बड़े महत्त्वपूर्ण स्मारक के रूप में आज भी विद्यमान है। लोग इसे जोतते-बोते नहीं हैं; क्योंकि उनके यहाँ वंश-परम्परा से यह धारणा प्रचलित है कि इस पवित्र भूमि पर भगवान महावीर अवतरित हुए थे, अत: इस पुण्यभूमि को जोतना-बोना नहीं चाहिए। भारत के धार्मिक इतिहास में यह एक अद्भुत घटना है, जो भगवान् महावीर की स्मृति अपनी ही जन्मभूमि में 2600 वर्ष बाद भी उनके सम्बन्धियों एवं वंशजों द्वारा आज भी सुरक्षित है। भारत के सांस्कृतिक इतिहास में महावीर का समय निश्चय ही प्रतिभा, मानसिक विकास एवं सूझ-बूझ का युग था, उनके समकालीनों में केशकंबली, मक्खली-गोशाल, पकुद्ध-कच्चायन, पूरणकश्यप, संजय वेलट्ठिपुत्त और तथागत बुद्ध प्रभृति धार्मिक पुण्यविभूतियाँ थीं। भगवान् महावीर ने अपने पूर्ववर्ती तीर्थंकरों से बहुत कुछ सीखा एवं पाया था। उन्हें धर्म और दर्शन की एक सुव्यवस्थित परम्परा ही उत्तराधिकार में नहीं प्राप्त हुई थी, अपितु सुसंगठित साधु-संघ एवं उनके सच्चे अनुयायी भी मिले थे। वे उस दर्शन एवं धर्म का सक्रिय प्रयोग करते थे, जिसे भगवान् महावीर तथा उनके शिष्यों ने प्रचलित किया। ___ महात्मा बुद्ध और भगवान् महावीर समकालीन थे। उनका विहार (प्रचार)-क्षेत्र भी एक ही था और वहाँ के राजवंश एवं शासक दोनों के ही भक्त थे। इन दोनों ने मानव के मानवीयरूप पर ही विशेष बल दिया था और जनता-जनार्दन को उनकी अपनी ही भाषा में उच्च नैतिक आदर्श सिखाये थे, जिनसे व्यक्तिमात्र का आध्यात्मिक धरातल ऊँचा उठा एवं सामाजिक दृढ़ता में योग मिला। ये आदर्श, भावी पीढ़ी के लिए प्राच्य अथवा मागध धर्म के श्रेष्ठ प्रतिनिधि सिद्ध हुए और श्रमण-संस्कृति के नाम से विख्यात हुए। सौभाग्य से तत्सम्बन्धी मूल-साहित्य आज भी हमें उपलब्ध है। प्रारम्भिक बौद्ध और जैन-साहित्य आज भी हमें उपलब्ध हैं। प्रारम्भिक बौद्ध और जैन-साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से दोनों में एक अद्भुत समानता तथा धार्मिक एवं नैतिक चेतना प्राप्त होती है, जो न केवल 2000 वर्ष पूर्व ही उपादेय थी; अपितु आज भी अनेकों उलझनभरी मानवीय समस्याओं के सुलझाने का एकमात्र साधन है। महात्मा गांधी ने जो सत्य और अहिंसा की लौ (ज्योति) जगाई, उसकी पृष्ठभूमि में भगवान् महावीर एवं महात्मा बुद्ध के नैतिक आदर्श ही तो हैं। पाली भाषा में जो निग्रंथ-सिद्धांत का विवरण मिलता है, वह जैन और बौद्ध के पारस्परिक सम्बन्धों के निर्णय में अत्यधिक सहायक है। भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध में इतनी अधिक समानता थी कि प्रारम्भ में तो यूरोपीय विद्वान् दोनों को एक ही व्यक्ति समझने की भ्रांति कर बैठे; पर आज गम्भीर अध्ययन के विकास एवं शोध-खोज के फलस्वरूप दोनों महापुरुषों का पृथक्-पृथक् अस्तित्व सिद्ध हो गया है, जिन्होंने भारतीय चिन्तनधारा के इतिहास पर एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतविद्या-जनवरी-जून'2001 (संयुक्तांक) + महावीर-चन्दना-विशेषांक 00 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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