Book Title: Prakrit Vidya 01
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 32
________________ उपदेश दिये थे, वे सब आज 'जैनदर्शन' के नाम से विख्यात हैं; पर आज वे हमारे जीवन में सक्रियरूप से नहीं उतरे हैं, जिनका जैन - साहित्य में विभिन्न भाषाओं द्वारा विवेचन किया गया था । भारतीय दर्शन एवं संस्कृति के इतिहास में बिहार प्रान्त का बड़ा महत्त्व है । भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर, राजर्षि जनक जैसी पुण्य विभूतियों को प्रदान करने का श्रेय इसी बिहार की पुण्यभूमि को है । मीमांसा, न्याय एवं वैशेषिक जैसे श्रेष्ठ दर्शनों की बहुमूल्य भेंट देने वाली मिथिला का गौरव भी तो बिहार प्रान्त ही को प्राप्त होता है। लगभग 2500 वर्ष पूर्व वैशाली ( वसाढ़, पटना से 30 मील उत्तर में ) एक समृद्धशाली राजधानी थी, इसके आसपास ही कुण्डपुर या क्षत्रियकुण्ड के महाराज सिद्धार्थ और उनकी महारानी त्रिशला (प्रियकारिणी) की कोख से भगवान् महावीर जन्मे थे। अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं एवं गुणों के कारण ही ज्ञातृपुत्र, वैशालिक, वर्द्धमान और सन्मति आदि नामों से प्रसिद्ध थे। उनकी माता त्रिशला चेटक - वंश से सम्बन्धित थी, जो विदेह का सर्वशक्तिमान् लिच्छवि शासक था, जिसके संकेत पर मल्लवंशीय एवं लिच्छवि लोग मर मिटने को तैयार रहते थे | महावीर के विवाह के सम्बन्ध में मूल - परम्परा उन्हें बाल- ब्रह्मचारी बतलाती है 1 राजपुत्र होने के कारण महावीर के तत्कालीन राजवंशों से बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। उनसे अपेक्षा की गई थी कि वे अपने पिता के राज्य का अधिकारपूर्वक उपभोग करें, पर उन्होंने वैसा नहीं किया। 30 वर्ष के होते ही उन्होंने राजकीय भोगोपभोगों का परित्याग कर डाला और आध्यात्मिक शांति की खोज के लिए मुनि दीक्षा धारण कर ली । इसप्रकार जीवन की कठिनतम समस्याओं को सफलतापूर्वक कैसे हल करना चाहिए? - इसका एक सर्वश्रेष्ठ आदर्श उन्होंने तत्कालीन जगत् के समक्ष प्रस्तुत किया । आध्यात्मिक शांति एवं पवित्रता के मार्ग में राग एवं संग्रह की प्रवृत्तियाँ बड़ी बाधक थीं, पर उन्होंने आदर्शरूप से सहर्ष उन सबका परित्याग कर दिया, स्वयं निर्ग्रथ बन गए और पैगम्बरी वेष धारणकर साधना और तपश्चरण में तल्लीन हो गए। इस बीच उन्हें जो-जो कष्ट भोगने पड़े, उनका विस्तृत वर्णन 'आचारांगशास्त्र' में मिलता है । 12 वर्ष की कठोरतम यातनाओं के पश्चात् महावीर अपनी दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सके और समय तथा स्थान की दूरी को लांघते हुए शुद्ध एवं पूर्णज्ञान की उपलब्धि कर 'केवली' या 'सर्वज्ञ' कहलाये। उन दिनों श्रेणिक बिंबसार राजगृह के शासक थे, भगवान् महावीर की सर्वप्रथम देशना (दिव्य - ध्वनि) राजगृही के समीप 'विपुलाचल पर्वत' पर हुई थी । लगातार 30 वर्ष तक वे मगध देश के विभिन्न भागों में महात्मा बुद्ध की भाँति विहार करते रहे और जैनधर्म का प्रचार किया । भगवान् महावीर के माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे, भगवान् महावीर ने अपने विहार क र-काल में जीवन की ☐☐ 30 Jain Education International प्राकृतविद्या जनवरी-जून 2001 (संयुक्तांक) महावीर - चन्दना-विशेषांक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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